२०१४ से जब से हमारे भारत मे केंद्र सरकार बदली है तब से देश मे एक अजीब डर का माहौल पैदा हुआ है जिसकी वजह से एक खास विचारधारा से जुड़े, या एक खास मज़हब वाले सेलिब्रिटी या प्रसिद्ध लोग समय समय पर विभिन्न मंचो में इस डर की घोषणा मीडिया के सामने करते रहे है,
मैंने सोचा इस डर के माहौल में मैं भी अपने डर की बात करु,
मुझे डर क्या होता इसका अहसास तब होता है जब मैं सोचता हूँ किसी दिन परिवार के साथ मैं किसी रेस्टोरेंट में बैठ कर खाना खाते हुए कोई दाढ़ी वाले हथियारबंद बंदूकधारियों का झुंड आकर मुझसे और परिवार से आयते सुनाने को तो नही कहेगा,
मुझे डर का अहसास तब भी होता है जब सोचता हूँ किसी दिन किसी बस ट्रेन में यात्रा करते हुए कब मेरा कोई दाढ़ी टोपी वाला सहयात्री अल्लाह हुकबर चिल्लाकर पूरी बस को अपने साथ ना उड़ा दे,
इसी डर की वजह से मेरा दिमाग मेरी आँखें कुछ अतिरिक्त सतर्क हो जाती है जब भी आसपास किसी ऐसे आदमी को देखता हूँ जो अपने छोटे भाई की सलवार और बड़े भाई का कुर्ता पहने हो,
डर क्या होता है ये आपकी गाड़ी/ मोटरसाइकिल की किसी खास मोहल्ले में कम होने वाली स्पीड बता देगी,
डर क्या होता है किसी खास समुदाय के मौहल्ले में रहने वाले आदमी से पूछे जो ना चाहते हुए मजबूरी में अपने घर को आधी पोनी कीमत में बेचने को मजबूर हो,
यदि तुम्हारे घर की महिलाओं को किसी खास मजहब वालो के मोहल्ले से गुजरना पड़ता है तो उसने पूछना डर क्या होता है....
हर गली के नुक्कड़ पर सुरमा लगा कर खड़े आवारा झुंड को देखकर नजर झुका कर, कान बन्द करके, अनचाहे स्पर्श और गंदी शब्दावली, अश्लील हरकतों को नजरअंदाज करने वाली लड़कियों से पूछो की डर क्या होता है,
नसरुद्दीन, आमिर खान जैसे किराए के सुवर ये जो दिन रात डर डर रेंकते है मीडिया में, इन्हें ये डर तब क्यो याद नही आते जब ये आतंकवादियों के लिए दया मांगते है झुंड बनाकर.... इनको असली डर क्या होता है इसका अहसास कराना जरूरी है ताकि ये किराए के डर, और असली डर का अंतर समझ सके,
इन जैसे हरामखोरो को ये बताना जरूरी है ये एक्टिंग का सेट नही है जहाँ डायरेक्टर के बताए डायलॉग बोलकर तालिया मिलेगी, ये एक्टिंग पर्दे के बाहर करेंगे तो तालियों से ज्यादा गालियाँ पड़ेंगी
पगला पंडित
मैंने सोचा इस डर के माहौल में मैं भी अपने डर की बात करु,
मुझे डर क्या होता इसका अहसास तब होता है जब मैं सोचता हूँ किसी दिन परिवार के साथ मैं किसी रेस्टोरेंट में बैठ कर खाना खाते हुए कोई दाढ़ी वाले हथियारबंद बंदूकधारियों का झुंड आकर मुझसे और परिवार से आयते सुनाने को तो नही कहेगा,
मुझे डर का अहसास तब भी होता है जब सोचता हूँ किसी दिन किसी बस ट्रेन में यात्रा करते हुए कब मेरा कोई दाढ़ी टोपी वाला सहयात्री अल्लाह हुकबर चिल्लाकर पूरी बस को अपने साथ ना उड़ा दे,
इसी डर की वजह से मेरा दिमाग मेरी आँखें कुछ अतिरिक्त सतर्क हो जाती है जब भी आसपास किसी ऐसे आदमी को देखता हूँ जो अपने छोटे भाई की सलवार और बड़े भाई का कुर्ता पहने हो,
डर क्या होता है ये आपकी गाड़ी/ मोटरसाइकिल की किसी खास मोहल्ले में कम होने वाली स्पीड बता देगी,
डर क्या होता है किसी खास समुदाय के मौहल्ले में रहने वाले आदमी से पूछे जो ना चाहते हुए मजबूरी में अपने घर को आधी पोनी कीमत में बेचने को मजबूर हो,
यदि तुम्हारे घर की महिलाओं को किसी खास मजहब वालो के मोहल्ले से गुजरना पड़ता है तो उसने पूछना डर क्या होता है....
हर गली के नुक्कड़ पर सुरमा लगा कर खड़े आवारा झुंड को देखकर नजर झुका कर, कान बन्द करके, अनचाहे स्पर्श और गंदी शब्दावली, अश्लील हरकतों को नजरअंदाज करने वाली लड़कियों से पूछो की डर क्या होता है,
नसरुद्दीन, आमिर खान जैसे किराए के सुवर ये जो दिन रात डर डर रेंकते है मीडिया में, इन्हें ये डर तब क्यो याद नही आते जब ये आतंकवादियों के लिए दया मांगते है झुंड बनाकर.... इनको असली डर क्या होता है इसका अहसास कराना जरूरी है ताकि ये किराए के डर, और असली डर का अंतर समझ सके,
इन जैसे हरामखोरो को ये बताना जरूरी है ये एक्टिंग का सेट नही है जहाँ डायरेक्टर के बताए डायलॉग बोलकर तालिया मिलेगी, ये एक्टिंग पर्दे के बाहर करेंगे तो तालियों से ज्यादा गालियाँ पड़ेंगी
पगला पंडित