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Tuesday, August 29, 2017

माँग और आपूर्ति की देन : गुरमीत सिंह राम रहीम

अरे यार 'बाबा गुरमीत सिंह राम रहीम इंसान ' की बाकि संत या मौलवी से तुलना नही करनी चाहिए । यार आप आधार देखो ये कोई Typical संत या मौलाना  मौलवी नही जो धार्मिक ज्ञान देता हो । मौलवी की तरह कुरान की आयते पढाकर , या बाबा संत की तरह गीता का सार बताये ।

    सीधी सी बात है , सडक से उठाकर अनाथ को पाला , शिक्षा दी , कई महिलाओ के पति का नशा छुडवाया , वेश्या का धंधा करने को मजबूर लडकियो की शादी करवाई , इन सब के लिए तो राम रहीम भगवान ही होगा ना ।

    अजी विपत्ती अच्छे अच्छो को अंधा बना देती है ।  गुरमीत बाबा का बेस धर्म नही कर्म है । 10 दिन पहले तक बाबा पर कोई सवाल नही उठा रहा था ! मीडिया के लिए  तो वो Modern और Rockzstar  बाबा  ही थे ना।
     
मै गुरमीत राम रहीम  के पक्ष मे नही हूँ , उसने गलत किया है जो साबित  हुआ है , उसे सजा सही मिली है ।

   All i have to say that , dont made pre planned perception or ideology !!   , विचार बदलने मे समय नही लगता !! धर्म और आध्यात्म जरूरी भी है और जरूरत भी ।

  बस उस मानसिकता को इस कदर हावी  मत होने देना कि अन्याय के खिलाफ आवाज ना उठा सको । और कानून पर भरोसा रखिये ।

  उन  दोनो साध्वी को सलाम जिन्होने इसके लिए लडा ।
  और हाँ वही समोसा और हरी चटनी खाते रहो कृपा बनी रहेगी बाकी किसी के पास जाने की जरूरत नही पड़ेगी,

आपकी हर समस्या की हम कह कर लेंगे, निदान वही करेगा जिसे ज्ञान होगा, जो सिद्ध है वही प्रसिद्ध है
किसी भी समस्या के समाधान के लिए संपर्क करे

पगले पंडित जी रासना वाले
सिद्ध श्री श्री 2017 अतुल शर्मा - Atul Sharma
हमारी बहुत सारी शाखाए है नक्कालों से सावधान ....

Saturday, August 26, 2017

टिप्पणी वालो गिरेबान में झांको

मुझे ये नही समझ आ रहा जिस देश का प्रशासन,  कानून व्यवस्था और न्यायपालिका इतनी मजबूत हो कि  १००-२०० लोगो की भीड़ भी पुलिस और प्रशासन को जब चाहे जैसे चाहे नाको चने चबवा देती हो, वहाँ यदि ५-७ करोड़ अनुयायियों वाले किसी बाबा को सजा सुनाते समय कोर्ट के बाहर जमा लाखो लोगो की भीड़ को संभालने में ८-१० घंटे लगाकर, बिना किसी बहुत सख्त कार्यवाही या बल प्रयोग के संभाल लेती है हाँ आगजनी और तोड़फोड़ रोकने में नाकाम रही है,

इसे नाकामी कहना चाहिए या कामयाबी, ये आपके विवेक पर निर्भर करता है यदि स्वयम्भू विशेषज्ञों की माने तो यदि इस भीड़ से सख्ती से निपटती तो जिन लाशों की गिनती गिनाकर हो हल्ला मचाया जा रहा है वो कितनी होती इसका हिसाब कोई लगा सकता है क्या....

और ये जो पूर्व फलाना पूर्व ढिकाना अधिकारी बैठ कर ज्ञान दे रहे है इन्होंने अपने कार्यकाल में क्या गुल खिलाए है कितने दंगे फसाद कितने नुकसान में निपटाए है इसका कच्चा चिट्ठा भी साथ मे दिखाया जाए तो बाहर बैठकर ज्ञान देने वाले इन ज्ञानियों की योग्यता का पता चलेगा, मुझे नही लगता इनमें से किसी को भी इस स्तर की भीड़ से निपटने का कोई अनुभव भी होगा

और सबसे मजेदार बात वो न्यायालय कार्यवाही सीखा रहा है जिसे एक बलात्कारी को बलात्कारी घोषित करने में १५ साल लग गए, धन्य है हम की हमारे माननीय न्यायधीश साहब जिनकी अपनी अदालतों में करीब १५ करोड केस लंबित है बाकी सभी विभागों को ज्ञान देते है,

ऐसे में जब हर कोई टिप्पणी दे ही रहा है तो मैं भी माननीय न्यायालय को कहना चाहूँगा की न्यायालयों में एक आईना भी लगवा लो ताकि खुद को भी देख सको दुसरो पर टिप्पणी करते वक्त,

खैर आईने का बजट पता नही कब पास हो, कब टेंडर हो , कब लगाए जाए लंबी प्रक्रिया है इस पर भी किसी ने स्टे ले लिया तो गयी भैंस पानी मे १५-२० साल के लिए, तब तक के लिए एक टेम्परेरी जुगाड़ बताए देता हूँ, अपनी गिरेबान में भी झाँक लिया करो माननीय न्यायालय साहब

पंडित जी की विशेष टिप्पणी
अतुल शर्मा - Atul Sharma की कलम से,
टिप्पणी सुनाते ही कलम तोड़ दी गयी है

Friday, August 25, 2017

अब तो जागो मोहन प्यारे

कोई ये बताएगा मारने वाले आम नागरिक थे या अंधे अनुयायी,

यदि हम खुद सरकार से यही चाहते है कि दंगाइयों से सख्ती से निपटा जाए तो इन अंधे दंगाई अनुयाइयों की मौत पर इतना बवाल क्यो ? या हम ये चाहते थे कि वो अपने साथियों की भीड़ भगदड़ में ना मरकर पुलिस की गोलियों लाठी डंडों से मरते ?

वास्तव में ये लोग इसी लायक थे, इन्होंने अपने सोचने समझने की शक्ति, अपना विवेक सब कुछ एक  अपराधी को सौप रखा था, सरकार दंगे रोकने में नाकाम रही इसमे कोई संशय नही लेकिन धारा १४४ लागू होने के बावजूद इतनी भारी संख्या में लोगो का जुटना वन लोगो की मानसिक स्थिति का परिचायक है, वे अपना विवेक खो चुके थे, न्यायपालिका ने अपना काम किया फैसला सुना दिया तैयारी करने की चेतावनी दे दी, लेकिन क्या इस बवाल को किसी भी किसी मे तरीके से मौजूदा स्थिति में रोकना संभव था,

जो पंचकूला में हुआ यदि वहाँ प्रशाशन लोगो को किसी भी तरह रुकने से रोक भी लेता तो ये सब अलग अलग शहरों में होता, अलग अलग शहरों में हुई छिटपुट आगजनी तोड़फोड़ इसकी बानगी भर है, जो हालात पंचकूला के हुए वो हर उस शहर के होते जहां इनका गढ़ है, यदि आपने अपना विवेक नही खोया है तो ये आप आसानी से समझ सकते है, जो गुस्सा अभी आपका सरकार की नाकामी और इस बलात्कारी और इसके अनुयाइयों पर है वो जायज है परंतु क्षणिक है,

इन दंगों को रोकने के लिए उन सभी शहरों को एक सप्ताह पहले से पूरी तरह बंद करना पड़ता जहाँ भी तोड़फोड़ आगजनी हुई है, क्या ये संभव था ? मीडिया में इसकी खबर ना आने देना था क्या ये संभव था ? संभव या संभव तो बाद की बात है क्या ये जायज था कि एक अपराधी और उसके अनुयाइयों के डर से कई शहरों के राज्यो को पूरी तरह बंधक बना दिया जाए, सम्भव था तो बस इतना कि इस नुकसान को थोड़ा कम किया जा सकता था,

लेकिन जो भी हुआ मुझे खुशी है कि एक अपराधी को उसके अपराध की सजा मिली, उस भीड़ में मरने वाले दंगाइयों से मुझे कोई हमदर्दी नही है वो लोग वहाँ मरने मारने के लिए एकत्र हुए थे तो उन्हें उनका अंजाम मिल गया उनके लिए कैसा दुख मनाना जिनकी आत्मा, विवेक पहले ही मर चुका है,

बाकी आने वाले समय, सरकारों  और न्यायालय के लिए सीख है ये घटना, अब ये समझना ही होगा इस एक सौ तीस करोड़ की आबादी को संभालने के अधिकारों का ढोल पीटने की नही अपितु दायित्वों का एहसास कराने का बिगुल बजाने की आवश्यता है,

ये जो हमारे माननीय न्यायालय और सरकारे कभी धर्म की आजादी कभी अभिव्यक्ति की आजादी कभी फलानी आजादी कभी ढिकानी आजादी, कभी मानव अधिकार कभी निजता का अधिकार, कभी नंगे घूमने का अधिकार कभी सडको पर हवस दिखाने का अधिकार की पीपनी की बजाती रहती है ये उसी का नतीजा है, सिस्टम को नपुंसक बना कर रख दिया है और फिर उम्मीद करते है रामराज आएगा,

ये ही जानना है ना पुलिस ने ढिलाई क्यो बरती, भीड़ क्यो जमा होने दी, मैं बताता हूँ

वहाँ जो पुलिस वाले ड्यूटी कर रहे थे उनमें से कुछ के परिवार रिश्तेदार उस बाबा के भक्त बने बैठे होंगे, कुछ कोनों में खड़े हुए दारु पी रहे होंगे ड्यूटी के समय, कुछ को इस भीड़ को देख कर मजा रहा होगा, और ज्यादातर वहां बस सरकारी आदेशो को हवा मानकर पिकनिक मना रहे होंगे, कुछ अपना समय पूरा कर रहे होंगे कि आखिर अब ये बला टलेगी, बाकी जो थोड़े बहुत जिम्मेदार बचे होंगे वो खुद को परिस्थिति के सामने असहाय महसूस कर रहे होंगे,  सरकारों नेताओ को दोष गाली देते समय ये भी याद रखो की सरकार आती जाती रहती है लेकिन सिस्टम हमेशा लगभग एक जैसा ही चलता है सरकार आएगी मंत्री बदलेंगे लेकिन वास्तव में बदलता कुछ नही, अय्यास अधिकारी भी वहीं रहते है, कामचोर कर्मचारी भी वही रहते है, और हाँ पैकेट लेने वाले मंत्री साहब का पता भी वही रहता है बस ऊपर वाली लाइन में नाम बदल जाता है खद्दर पहने बैठा वो जमूरा कभी अमर बन जाता है कभी अकबर बन जाता है कभी एंथोनी बन जाता है

गुस्सा अभी बाकी है मेरे दोस्त
To be continued....

अतुल शर्मा - Atul Sharma

राम रहीम केस

गुरमीत सिंह राम रहीम (असली नाम मुझे नही पता खैर जो भी हो समझ तो गए ना) दोषी है या नही ये तय होने में अभी समय बाकी है रिजल्ट जो भी हो मुझे निजी रूप से कोई खास फर्क नही पड़ेगा, क्योंकि ना तो मैं उसका अनुयायी हूँ ना ही मेरी कोई दुश्मनी या ईष्या है, हाँ उस से जुड़ी कुछ चीजो के मजे जरूर लेता रहा हूँ समय समय पर जैसे उसके अनुयाइयों का उसे पिताजी कहना या उसका फिल्मे बनाना या उसका रंगीन लाइफस्टाइल,

फैसला जो भी आए उस से पहले मैं कोई राय नही बनाना चाहता इस बारे में क्योंकि मैंने दोनो ही पक्षो के तर्क पढ़े सुने है, वास्तविकता से पर्दा उठाने के लिए सीबीआई काम कर रही है और फैसला सुनाने के लिए कोर्ट है, यदि आज के फैसले के बाद किसी भी पक्ष को लगेगा कि उसके साथ न्याय नही हुआ तो वो ऊपरी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है, भारतीय कानून और न्याय व्यवस्था इतनी लचर है कि यदि आप किशोर अवस्था मे कोई अपराध करे और कानून से लड़ने का जज्बा दिखाए तो आप पूरी जिंदगी मीडिया में रहकर भी एक सम्मानित नागरिक की तरह अपना जीवन जीकर बुढ़ापे में अपनी मौत मर सकते हैं,   तो राम रहीम या समर्थकों को इसमे चिंता करने या परेशान होने की जरूरत नही है न्यायालय के दरवाजे अपराधियो के लिए रात के २ बजे भी खुल सकते है बस आपमें खुलवाने का दम होना चाहिए और इस मामले में मुझे कोई संदेह नही ये गुरमीत राम रहीम किसी भी तरह से कमजोर है,

एक और बात यदि आज फैसला राम रहीम के खिलाफ आता है तो ये जो हुजूम सड़को पर जुटा हुआ है भारतीय कानून व्यवस्था की जड़े हिला देगा, हालांकि इस बार सरकार परिस्थितियों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है लेकिन टकराव की स्थिति बनी तो परिणाम भयानक होंगे,

इस सब से इतर मुझे कोर्ट का रवैया पसंद आया जिसने प्रशाशन को खुले हाथ दिए है स्थिति से निपटने के लिए, लेकिन साथ ही साथ एक बात परेशान भी कर रही है वो है कोर्ट की क्षणिक मर्दानगी, माफी चाहूंगा आपने बिल्कुल सही पढ़ा है, क्या ये वही भारतीय न्यायालय है जो आतंकियों के मददग़ार / या भावी आतंकियों पर नरमी बरतने के आदेश सेना को देती है, सेना को पैलेट गन चलाने से रोकना चाहती है लेकिन यहाँ निहत्थे अनुयायियों पर कोई नरमी ना बरतने का आदेश देती है, मीडिया हॉउस या अदालतों के बाहर बैठे वो दलाल मानव अधिकारों के रक्षक भी कहीं नही दिखाई दिए जो अदालत के इस रवैये के विरोध में मोमबत्ती जला सके या आदेश पर ऊपरी कोर्ट से स्टे ला कर सरकार प्रशाशन के हाथ बाँधने की कोशिश कर सके,

अदालतों के मर्दानगी देशद्रोहियो के खिलाफ कहाँ चली जाती है, कभी कसाब को बिरयानी खिलाती है कभी पत्थरबाजों के मानवाधिकारी गिनवाती है, शायद रामपाल केस में जो प्रशासन के धुएं निकले थे उन्हें देख कर ये तैयारी हो,

हाँ यदि फैसले के बाद यदि किसी भी तरह का कोई हंगामा हो तो मैं खुद चाहता हूँ कि सख्ती से निपटा जाए, कोई भी आंदोलन/ विरोध/ प्रदर्शन यदि हिंसात्मक होता है तो सरकार को कुछ समय के लिए मानवाधिकार और अदालत की तरफ से आँख बंद करके उसे सख्ती से कुचलना चाहिए, और हां दंगे के बाद भी एक एक को चुन चुन कर उन्हें आभास कराना चाहिए कि हम बन्दरो की प्रजाति के है पिछवाड़ा अभी भी लाल हो सकता है

और जिस तरह शासन प्रशासन तैयार उसे देख कर  पहले ही बता सकता हूँ आज राम रहीम पर आरोप सिद्ध होंगें और सजा सुनाई जाएगी, आज गुरमीत राम रहीम का तिलिस्म टूटना लगभग तय है

..... To be continued

#रामरहीम #हरियाणा #पंजाब #पंचकूला
अतुल शर्मा - Atul Sharma


Sunday, August 20, 2017

भारतीय रेलवे, हम और हादसे

शायद आप सभी जानते होंगे भारतीय रेलवे  विश्व के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक है, आधारभूत सुविधाओं के स्तर पर अभी तक १० में से मात्र ३-४ अंक जुटाने लायक, समस्या कहाँ है और क्या ये जाने बिना उसका उपचार करना अत्यंत मुश्किल है, मेरा निजी अनुभवों के आधार पर मानना है कि पुरानी चीजो की मरम्मत से ज्यादा किफायती  आसान और सुविधाजनक उन्हें बदल देना होता है, ये बात रेल के परिपेक्ष में थोड़ी जटिल हो जाती है, सबसे पहले तो पूरे रेलवे को बन्द करके नए सिस्टम से बदलना एक असम्भव सा काम है, तो इस विचार को थोड़ी देर के अलग रख देते है अब सुधार का एक ही विकल्प बचा वो है सिस्टम की मरम्मत, जैसा कि अभी बताया है रेल नेटवर्क बहुत ज्यादा विस्तृत है तो सुधार ना तो आसानी से संभव है ना ही एक दिन में लेकिन करना तो है ही,

अब किसी भी सुधार बदलाव की बात करे तो जो बात सबसे पहले देखनी पड़ती है वो है जेब, मतलब मेरी जेब मे कितना धन है, यदि धन बेहिसाब है तो मुझे देखने सोचने की कोई जरूरत नही महसूस होगी जो चाहिए होगा मन होगा तुरंत ले सकता हूँ बदल सकता हूँ, यदि जेब मे धन सीमित है तो मुझे देखना पड़ेगा कि क्या मुझे इसकी जरूरत वास्तव में है, क्या नया लिए बिना काम चल सकता है, क्या इसी को सही किया जा सकता है,
जैसे ही कोई हादसा होता है हमारा गुस्सा सातवें आसमान पर होता है, ऐसे में सरकार की निंदा करना हमारा फर्ज बन जाता है, वैसे निंदा रस मुझे अत्यंत प्रिय है बड़ा मजा आता है किसी की भी निंदा करने में, खैर मुझे नही लगता ये समय निंदा का है अभी समस्या पर चिंतन करते है,

याद आया जब भी कोई रेल हादसा होता है हमे रह रह कर रेल का बढ़ता किराया याद आता है, सबको चिंता होती है कि प्लेटफॉर्म टिकट २ रुपये से १० रुपये हो गया,  किराए में भी अच्छी खासी बढ़ोतरी हो गयी, प्रीमियम ट्रेनों में तो लूट मचाई हुई है डायनामिक प्राइसिंग के नाम पर, इस सब के बावजूद भी देश की ७० प्रतिशत यातायात जरूरते भारतीय रेलवे ही पूरा कर रहा है, कैसे पूरा कर रहा है ये जानना है तो रेलवे के किसी ड्राइवर या गैंगमैन से बात करो वास्तविक स्थिति समझ आ जाएगी, पटरियां घिस चुकी है, सिग्नलिंग सिस्टम पुराने हो चुके है, नवीनीकरण और सुधार समय रहते क्यों नही किये गए, इसके दो कारण हो सकते है या तो जिम्मेदार अधिकारी इस योग्य नही थे कि वो जरूरत समय पर भाँप सके, या फिर सरकार ने उन अधिकारियों की नही सुनी हो, नया सुनने के भी दो कारण हो सकते है या तो सुनना ही नही चाहती हो, या बजट ना हो सरकार के पास, बजट ना होने का एक ही कारण होता है आमदनी अठन्नी खर्चा रुपया, आमदनी क्यों नही बढाई गयी इस पर लिखूंगा तो पोस्ट राजनैतिक होने का खतरा है जो मैं अभी लेना नही चाहता, क्योंकि मुझे अपने मुद्दे से नही भटकना है,

१० में से ३-४ अंक जुटाने लायक  रेलवे अभी भी ७० प्रतिशत जरूरते क्यो पूरी कर रहा है, क्योंकि बाकी कोई भी यातायात का साधन ना तो आज भी इतना सुलभ है ना इतना सस्ता है, ना इतना आरामदायक है ना सारे देश को एक डोर में जोड़े हुए है, सुविधा के मामले में यदि बाकी मौजूदा यातायात साधनों से मुकाबला करे तो रेलवे अभी भी सबसे कम कीमत में सबसे ज्यादा सुविधा देता है, सुलभता यानी आम आदमी तक पहुंच किसी को बताने की शायद ही जरूरत हो, हादसा हुआ है और सुरक्षा की बात ना हो तो पोस्ट का कोई अर्थ नही रह जाता, सुरक्षा में तैनात जीआरपी और आर पी एफ के जवान थानों और ट्रेन में बैठ कर जो दारू पी रहे है वो रेलवे किसी दूसरे ग्रह या देश से नही लाया है सब हमारे ही भाई भतीजे, चाचा ताऊ, यार रिश्तेदार या पड़ोसी है,

इस वाली सुरक्षा की बात नही है बात रिस्क फैक्टर की है, ट्रेन में चलने में जान का खतरा है, बड़े दुख की बात है
वैसे रिस्क फैक्टर ही देखा जाए तो सड़क हादसों में मरने वालो का कहीं कोई आंकड़ा मीले तो तुलना करके मुझे भी बता देना,

क्या हवाई जहाज से तुलना करनी है, ठीक है भाई वो भी कर लो, बस ध्यान रहे जितने यात्री पूरे दिन में दिल्ली से मुम्बई सारी फ्लाइट में मिलाकर जाते है उससे कम से कम दोगुने तो अकेली देहरादून एक्सप्रेस ले जाती है, बाकी हिसाब में थोड़ा कच्चा हूँ हिसाब करके मुझे भी बताना मत भुलना,

इस सब के बावजूद मुझे पूरा विश्वास है रेलवे सही रास्ते पर जा रहा है, बुनियादी ढांचागत सुधारो पर काम तेजी से हो रहा है, वो भी  दिख रहा है, लेकिन इस तरह कब  हादसो पर लगाम लगाना जरूरी है, बीमार मानसिकता वाले जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को सजा मिलना भी उतना ही जरूरी है वो तो सुना ही होगा "भय बिन होय ना प्रीत "

जिन्होंने अपनो को खोया है इस हादसे में उनके साथ मेरी पूरी संवेदनाए है, एक बार फिर से कहता हूँ हमे अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी जिम्मेदारी से करना होगा नही तो आज वो पीड़ित है कल कोई और होगा एक दिन हमारा नम्बर भी जरूर आएगा, इसीलिए समय रहते जाग जाओ

अतुल शर्मा - Atul Sharma


खतौली रेल हादसा ( हरिद्वार - पुरी एक्सप्रेस)

#हरिद्वार #पुरी #उत्कल #रेल #खतौली #मुजफ्फरनगर #हादसा #रेलवे #लापरवाही #गैरजिम्मेदाराना #जिंदगी #मौत #जिम्मेदार #कौन

कल (शनिवार दिनांक १९अगस्त २०१७) शाम हुए उत्कल एक्सप्रेस हादसे को देख कर अचानक बड़ा झटका, मैं खुद उस समय ड्यूटी पर था जैसा कि सबको पता है में खुद दिल्ली मेट्रो में ट्रेन चालक हूँ, रेलवे से जुड़ा होने के कारण इस क्षेत्र की खामियां भी अच्छे से जानता हूँ, जैसे ही मैं अपनी ट्रेन चलाकर वापस रेस्ट रूम आया तो टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज में रेल हादसे की खबर थी, हादसे हमारे क्षेत्र के पास ही हुआ था इसलिए और भी ज्यादा चिंताजनक बात थी

मीडियाई पड़ताल के आधार पर इसमे दो बात बिल्कुल साफ है इस बार चालक की कोई गलती नही है, दूसरी बात ये हादसा रेलवे कर्मचारियों के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार का नतीजा है, अभी तो जो जानकारी निजी सूत्रों, मीडिया और वहाँ के निवासियों से प्राप्त हुई है उसके हिसाब से  ऊपरी तौर पर इस हादसे के लिए पूरी तरह से रेलवे का पी वे विभाग जिम्मेदार है जोकि ट्रैक की मरम्मत आदि का काम देखता है,

सच को नकारा नही जा सकता, रेलवे कर्मचारी या कहे कोई भी सरकारी कर्मचारी (कुछ गिने चुने विभागों को छोड़कर) अपना काम जिम्मेदारी से नही करते, दैवीय आपदा और मानव भूल को अलग कर दे तो भी रेल कर्मचारियों की लापरवाही से पता नही  कितने हादसे होते है, कई बार जान माल की हानि होती है कई बार नही भी होती,  कई बार मीडिया में जगह मिलती है कई बार नही भी मिलती, इस हादसे के लिए जिम्मेदार वहां का पी वे स्टाफ है, मेरी खुद वहां के एक साथी स्टाफ से बात हुई है जो ये बता रहा है की वहां आजकल लापरवाही चरम पर थी, वजह थी नये JE से लोगो को ना संभाल पाना, ना ही उसे काम की जानकारी थी ना ही लोगो  पर कोई कंट्रोल, हादसे के वक़्त भी ये ही हुआ, दोपहर में बिना स्टेशन इंचार्ज की बताए हुए बिना कोई ब्लॉक लिए टीम की लेकर ट्रेक पर पहुँच गया, बाकी गैंगमैन स्टाफ जोकि पुराना था वो किसी की नही सुनते थे बीच मे काम छोड़ कर भाग गए, पटरी का एक टुकड़ा बदलना था, जिसे काट कर बदल चुके थे लेकिन वेल्ड करना बाकी था, विभाग में किसी को इसकी कोई औपचारिक जानकारी नही थी भले ही उसने मौखिक तौर पर बताया हुआ हो, बारिस, धूप, थकान या कामचोरी वजह जो भी रही हो लेकिन सच यहीं है कि गैंगमैन स्टाफ और JE की गलती की वजह से ही ये हादसा हुआ है, इसी से मिलती जुलती हालात बताने वाला एक ऑडियो भी वायरल हो चुका है, जिसमे लोहार आदि गैंगमैन स्टाफ और JE की कमी बता रहा है वहाँ का फाटक पर तैनात गैंगमैन स्टाफ, जो साफ साफ कह रहा है कि ना कोई पेट्रोलिंग करता है ना मरम्मत,

मेरे कई नजदीकी दोस्त और परिवार जन रेलवे में कार्यरत है, मैं खुद भी मेट्रो रेल में हूँ इसलिए रेलवे की हकीकत भलीभांति जानता हूँ, इसमे कोई शक नही  की गैंगमैन सबसे मेहनती आदमी है रेलवे का, उसके बाद ड्राइवर, लेकिन सभी को एक साथ नही रख सकते कि बार विभिन्न कारणों के लापरवाही होती है और कुछ समय बाद वो आदत या वर्क कल्चर बन जाती है, खतौली में भी वहीं हुआ वहाँ नया जेई अपने सबऑर्डिनेट को कंट्रोल नही कर पाया और लापरवाही शुरू हुई, शुरू में कोई हादसा नही हुआ तो ये ही वर्क कल्चर बन गया वहाँ का, लेकिन बिना मरम्मत के कब तक चलता

बाकि यदि जाँच निष्पक्ष हुई तो सच सबके सामने आ ही जाना है नही तो सरकारी जाँच में किस तरह लीपापोती की जाती है उस से भी हम सभी भली भांति वाकिफ है,

पीड़ित परिवारों के लिए संवेदना और ईश्वर से प्रार्थना है इस मुश्किल समय मे उन्हें हिम्मत दे और दोषियों को सजा, ईश्वर ही न्याय कर सकता है बाकी देश के कानून और न्यायप्रणाली से मुझे निजी तौर पर कोई खास उम्मीद नही है

Thursday, August 10, 2017

चोटी और डोकलाम

अभी अभी कहीं पढ़ा कि चीन कह रहा है अभी भी भारत के ५३ सैनिक और एक बुल्डोजर डोकलाम में चीन की सीमा में घुसे हुए है,

दरसअल जब से भारत चीन का डोकलाम में ये सीमा विवाद मीडिया में आया है तभी से सोच रहा हूँ आखिर ये माजरा क्या है, फिर मेरे पांचवी पास से तेज दिमाग ने जोड़ घटा गुणा भाग कर के ये हिसाब लगाया है कि ये सब मिलकर हमे पागल बना रहे है, हम भी डिप्लोमची है कोई ऐसे वैसे नही तो जो बात इस हिसाब लगाने से सामने आई है वो ये है कि हमारे सडजी ने अपने ही कुछ असम मणिपुर के भाइयो और कुछ नेपाली साबजी को पकड़ कर फोटो शूट कराया था इस बार दिल्ली युद्ध के लिए तैयार है, अब कुछ आपियो ने जोश जोश में वो फोटो फेसबुक ट्विटर पर अपनी दहाड़ी पूरी करने के मकसद से पोस्ट कर दिया,

यहां अमित शाह के चेले कुछ भक्त फिराक में बैठे थे कि कब सडजी कुछ बोले हम सडजी को ट्रोल करे, वैसे भी जब से कपिल मिश्रा ने रायते में फेवीक्विक मिलाया है तब से सोशल मीडिया में कच्चे माल की भारी कमी बताई जा रही है, इधर मोदी नाम पर बने के एक फर्जी एकाउंट ने फोटोशॉप करके सड़ जी को सेना की वर्दी पहना कर फोटो ट्वीट कर दी, मजे मजे में भक्तों की टोली ने फोटो वायरल कर दी,

वहाँ शी जिनपिंग फोटो देख कर सदमे में आ गया कि ये दिल्ली किससे युद्ध को तैयार है और ये इसने हमारे चीनी भाइयो को क्यो कब्जे में ले लिया, वहाँ चीन ने भी अपनी तैयारिया शुरू कर दी वे भी चुपचाप डोकलाम के रास्ते भारत मे घुसने की तैयारी कर रहे थे अपने भाइयों को बचाने के लिए, वहाँ भारत की सेना पहले ही तैयार खड़ी मिली अपने ट्रक लेकर, अब जिस खेत मे चीन और भारत के सैनिकों की मुलाकात हुई उसका पता ना चीन के सैनिकों को है ना भारत के सैनिको को की ये है किसका, जिसका वो खेत है उसे कोई पूछ नही रहा दोनो अपना बता रहे है,

जब से वो एक सैनिक ने दाल रोटी वाली वीडियो बना कर डाली तब से हर कोई वीडियो बनाने में लगा हुआ है, अपने सैनिकों ने बन्दूक की जगह अपने मोबाइल निकाल कर वीडियो बनानी शुरू की और फेसबुक वाट्सएप्प पर घूमने के लिए छोड़ दी,

अब यहाँ ठहरे ५६ इंची छाती वाले बोले चीन वाले कुल ५६ इंच के नही है बोले क्यो भाइयो है कि नही...
भीड़ का क्या है भीड़ ने क्या सुना क्या समझा ये तो वो ही जाने लेकिन भीड़ की आवाज से साहब समझ गए १०० करोड़ मेरे साथ है बाकी २५ करोड़ अभी डर के साये में है और हाँ जो ३-४ करोड़ बचे वे कांग्रेसी है उनकी अभी कहीं कोई गिनती नही है, साहब ने भी सेना को फरमान जारी कर दिया कि अब पीछे नही हटना है और राजनाथ को बोला कि एक कड़ी निंदा वाला ट्वीट टाइप करके ड्राफ्ट में रखो यदि कुछ गड़बड़ हो तो तुरंत कड़ी निंदा कर देना,

इधर अपने सडजी परेशान की मैं तो डेंगू मछरों से युद्ध करने निकला था ये अनपढ़ आपिये मेरा जनाजा ही निकाल कर मानेंगे, खैर डैमेज कंट्रोल के लिए सडजी ने आनन फानन में नई रणनीति बनाई कि कैसे भी करके पब्लिक का ध्यान उस मुद्दे से हटाया जाए कहीं चीन वाले सच मे मुझे ना उड़ा दे, इस से पहले की सडजी चप्पल या चांटा लगवाते हमारे पप्पू भी साहब ने पत्थर फेंकवा लिया, सड़ जी ने मन ही मन पप्पू को गाली देते हुए आपियो की आपात बैठक बुलाई, पिंचर वालो का काम तो जोरो शोरो से चल रहा है लेकिन आजकल बाल काटने के धंधे में लगे लोग बेरोजगार है जिसे देखो दो मीटर की दाढ़ी बढ़ाए देवदास बना घूम रहा, सड़ जी के आई आई टी वाले दिमाग में तुरंत बेरोजगार नाईयो को रोजगार देने का खयाल आया और उन्हें एनसीआर में चोटी काटने का ठेका दे दिया,

अब हमारी अबला माताओ बहनों ने भी योजना का पूरा लाभ उठाया जिन्हें कोई बाल छोटे नही करने दे रहा थ खुद ही उड़ा कर चोटी गैंग के नाम लगाना शुरू कर दिया,  इधर भारत की मीडिया भूखी बैठी थी कि कब से कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नही आई , इस ब्रेकिंग न्यूज़ के आते ही मीडिया चीन और देशभक्ति को भूल चोटी गैंग का पर्दाफाश करने में जुट गई,

वहाँ हमारे जिनपिंग भाईसाहब परेशान है कि यहां मैं रोज युद्ध की धमकी दे रहा हूँ उधर कोई सीरियस नही ले रहा, आज थक हारकर हाथ जोड़कर विनती की है कि भाई साहब यदि चोटी गैंग से फुरसत मिल गयी हो तो ये भी देख लो अब तक मैं पूरे २४१५७८ बार युद्ध की धमकी दे चुका हूँ अब तो सीरियस हो जाओ

नोट: ये केवल एक हास्य व्यंग्य है कोई अपनी राजनैतिक भावना बेन को आहत ना करे,

आपका पगला पंडित
अतुल शर्मा गुड्डू
रासना  वाला