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Wednesday, September 30, 2020

हाथरस और हम

क्या मैं हाथरस पर कुछ ना लिखूं ? क्या मैं हाथरस पर चुप रहने का रास्ता चुन सकता हूँ ? मेरे पास हजार कारण है चुप रहने के, लेकिन बोलने का जो कारण है वो उन सब से बड़ा है वो है लड़की का बलात्कार और हत्या हुई है । 

हाथरस घटना : 
  मीडिया और सोशल मीडिया के ट्रायल के बाद ये बात समझ आई है कि मामला आपसी दुश्मनी का परिणाम है, लड़की अपनी माँ के साथ खेत मे गयी थी वहीं मुख्य अपराधी ने दबोच ली, बलात्कार किया, जिस दौरान लड़की का गला दबाया गया, जबरदस्ती मार पिटाई बचने का प्रयास इस सब के दौरान लड़की की जीभ उसी के दांतों से कट गई, लड़की को गर्दन और रीढ़ की हड्डी में भयानक चोट आई, जिसकी वजह से इलाज से दौरान अस्पताल ने लड़की की मौत हो गयी । 
   फिर आपसी दुश्मनी का भी एंगल था तो आरोपी एक से चार हो गए, 

  इसके बाद जब मामला मीडिया में आया तो पुलिस भी हरकत में आई चारो आरोपी /अपराधी गिरफ्तार कर लिए गए । मामले पर राजनीति थोड़ी और गहराई तो पुलिस ने हंगामे के डर से घर वालो की उपस्थिति में रात में ही अंतिम संस्कार करा दिया । बवाल और ज्यादा हंगामे राजनीति और लाश की दुर्गति से बचने के लिए । 

   राजनीति गलियारों में हंगामा शुरू हुआ तो  मुख्यमंत्री साहब में SIT गठित कर दी त्वरित  जांच के लिए, मुआवजे , नौकरी और घर की भी घोषणा कर दी। मामला फास्टट्रैक कोर्ट को भी ट्रांसफर कर दिया । 
  
  जनता क्या चाहे.... तुरंत दान महकल्याण । 
गाड़ी पलट दो, एनकाउंटर कर दो, गोली मार दो, फांसी दे दो । न्याय न्याय न्याय । 

 राजनीति के दुकानदार कुछ भी कहे लेकिन जनता की भावनाएं भड़क चुकी है, वो फेसबुक वाट्सएप ट्विटर पर धड़ाधड़ कॉपी पेस्ट शेयर करेगी, डीपी बदलेगी मोमबत्ती भी जलाएगी यदि कहीं फ्री में बट रही होंगी।  

  बाकी बदलेगा कुछ नही इसके उसके इनबॉक्स में अभी भी लार चुवाने जाएँगे, गली नुक्कड़ पर खड़े होकर माल ताड़ेंगे, आँखे सकेंगे। फेसबुक वाट्सएप पर संत का चोला पहन कर क्रांतिकारी भी बनेंगे ।

   लेकिन यदि इतने हंगामे के बाद भी गाड़ी ना पलटी, या भागने का प्रयास ना किया तो धिक्कार है... धिक्कार है उत्तरप्रदेश सरकार, धिक्कार है उत्तरप्रदेश पुलिस, धिक्कार है उत्तरप्रदेश प्रशासन, 

   लोकतंत्र है तो लोकमत का सम्मान करना ही होगा, कानून और न्याय वही है तो जनता को प्रसन्न रख सके अंततः ये सरकार का धर्म है ये ही कर्तव्य है । मैं बहुसंख्यक जनता के साथ हूँ, मैं चाहता हूँ जल्द से जल्द गाड़ी पलटे, या अपराधी भागने का प्रयास करे । लेकिन जिस तरह गाड़ी पलटने पर पुलिस बच जाती है उसी तरह वो तीन भी बच जाए, गोली उनके भी हाथ जांघ या कोहनी को छू कर निकल जाए लेकिन जो मुख्य अपराधी है उसकी गाड़ी पलटनी ही चाहिए । क्योंकि मैं नही चाहता 10-20 या पचास साल बाद गवाहों सबूतों की कमी कहकर मामला रफा दफा हो या 10 -5 साल की सजा देकर इन्हें बाहुबली , नेता या अपराधी बनाया जाए ।

लोकतंत्र में लोकमत का सम्मान करना ही पड़ेगा योगी जी। 

गांधी जी और भुला दी गयी सच्चाई


    बड़ी संख्या में लोग इस भ्रम में हैं कि भारतीय स्वतंत्रता का आंदोलन 1914 - 15 में उस समय प्रारंभ हुआ जब गांधी जी जेल गए और 15 अगस्त 1947 को समाप्त हो गया जब "राष्ट्रपिता" गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता मिल गई । सहस्त्रों वर्षों के इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जब इतने अधिक लोगों को धोखे में रखा गया हो और वे उस धोखे पर विश्वास करते गए हो ।

भारत में गांधीजी के पूर्व भी शताब्दियों से ऐसा स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था जो कुचला नहीं गया था । 1818 में जब मराठा शक्ति क्षीण हो गई तो अंग्रेजों ने यह सोचा कि भारत में स्वतंत्रता युद्ध समाप्त हो गया है परंतु उत्तरी भारत में सिखों की शक्ति जाग  उठी कालांतर में सीख परास्त हुए तो 1857 के विद्रोह की तैयारियां होने लगी और यह विद्रोह इतना अकस्मात और तेजी से हुआ  कि अंग्रेज कांप गए थे उन्होंने कई बार सोचा कि भारत छोड़ दिया जाए ।

जब अंग्रेजों ने पुनः पैर जमाए तो कांग्रेस ने जन्म लिया ।

1885 से ही आप राष्ट्र स्वतंत्रता के लिए पुनः प्रयत्न करने लगा पहले वैधानिक रूप से यह प्रयत्न किए गए और फिर शस्त्रों द्वारा भी अंग्रेजों का प्रतिकार किया जाने लगा । खुदीराम बोस ने 1909 में बम फेंक कर देश की भावना को व्यक्त किया ।


गांधी जी भारत में 1914-15 में आए और इसके 8 साल पूर्व ही भारत के अधिकांश भाग में क्रांतिकारी आंदोलन फैल चुका था स्वतंत्रता संग्राम अभी चिंगारी की भांति सुलग रहा था । गांधी जी और उनके अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों से वह आंदोलन दुर्बल होने लगा । किंतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महाराष्ट्र पंजाब तथा बंगाल के अन्य क्रांतिकारी नेताओं को धन्यवाद देना चाहिए कि लोकमान्य तिलक की मृत्यु के पश्चात गांधी जी का प्रभाव जो जो बढ़ता गया क्रांतिकारी आंदोलन भी प्रखर होते गए । 


   क्रांतिकारी आंदोलन बंगाल और महाराष्ट्र से चलकर पंजाब तक पहुंचा था । मातृभूमि की स्वतंत्रता की वेदी पर सुख सुविधाओं और जीवन की बलि देने वाले वीर सच्चे हुतात्मा थे । उन्हीं के रक्त से भारतीय स्वतंत्रता मंदिर की नींव खींची गई है । लोकमान्य तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित किया महात्मा गांधी ने तो बने बनाए का लाभ प्राप्त किया 1909 से 1935 तक विधान में जितने भी सुधार हुए वे क्रांतिकारी आंदोलनों के कारण हुए ।


गांधी जी ने अपने प्रत्येक भाषण और लेख में क्रांतिकारी आंदोलन की निंदा की इसके विपरीत भारत की जनता हृदय से क्रांतिकारियों की सराहना करती रही।

    गांधी जी ने स्वतंत्रता प्राप्ति में शस्त्र प्रयोग की जितना निंदा की उतनी ही क्रांतिकारी आंदोलन लोकप्रिय होता गया । यह बात मार्च 1931 के कराची अधिवेशन से स्पष्ट है , गांधीजी के कठोर विरोध के बावजूद भगत सिंह के उस साहस की प्रशंसा करते हुए एक प्रस्ताव पास किया गया जो उन्होंने 1929 में असेंबली में बम फेंक कर दिखाया था ।