Search This Blog

Thursday, April 28, 2016

भारतीय मुस्लमान हिजाब शिक्षा और कानून

मुसलमानों को एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। AIPMT वाले मसले में। लड़कियों को डाक्टरी के (दाखिला) इम्तेहान में बैठने के लिए हिजाब/नकाब/पर्दा की इजाज़त मिल गयी है शायद।
खुश तो बहुत होंगे आप। लेकिन आगे की क्या सोची?
मेडिकल कॉलेज में लड़कियों को पुरुष के जननांग में फोली कैथेटर (पेशाब की नली) डालना सिखाया जाता है ताकि इमरजेंसी के वक़्त यदि पुरुष डॉक्टर अनुपस्थित हो तो यह काम महिला डॉक्टर कर दे।
इसी तरह के रूटीन उपचार लड़को को भी सिखाये जाते हैं। यह उम्दा डॉक्टरी तालीम का हिस्सा है।
पिछले दिनों एक मेडिकल कॉलेज की सर्जरी ओपीडी में जाना हुआ। वहां देखा कि MBBS के बच्चों की टीचिंग चल रही थी। प्रोफेसर बच्चों को बवासीर और स्तन कैंसर के बारे में पढ़ा रहे थे। पढने वालों में लड़के व् लडकिया दोनों थे जिन्हें उनके टीचर दो मरीज़ों के ज़रिये उपचार का तरीका सिखा रहे थे। मरीज़ों के अंग विशेष खुले थे। एक मरीज़ पुरुष था एक महिला।
अब ऐसा नही है कि मैं आपके हिजाब के खिलाफ हूँ। आप हिजाब लगायें, आपके लिए बहतर है। लेकिन 3 घंटे की प्रवेश परीक्षा में एक स्कार्फ न पहनने से क्या बिगड़ जाता आपका? ग़ैर-महरम को देखना गलत है, फिर उसके जननांग देखना तो और भी ग़लत। लेकिन आपको देखना पड़ता है क्यूंकि आपका फ़र्ज़ है, आपको मरीज़ की जान बचानी होती है।
ठीक इसी तरह सीबीएसई ने तीन घंटे की पाबंदी इसलिए लगाई थी ताकि सिस्टम में धोखाधड़ी को पकड़ा जा सके। लेकिन आपको क्या! आपको को अपना पर्दा बचाना है, सिस्टम बर्बाद हो, इब्लीसियत और बद-उन्वानी का शिकार हो, आपकी बला से !!
अब जिन्होंने नकाब/  हटने पर हंगामा किया था, क्या उनके पास इतना कलेजा है कि वो यह सब कर पायें।
अलीगढ़ की एक लड़की ने तो पिछले साल बड़े फख्र से प्रवेश परीक्षा ही छोड़ दी थी ! ऊपर से अपनी इस तीस मारखानी की दास्ताँ अख़बार में भी छपवाई थी !
इस्लाम में तस्वीर हराम है। अब उन मोहतरमा से कोई पूछे कि कल फोटो की वजह से पासपोर्ट न बनने की हालत में क्या आप हज का सफ़र भी ठुकरा देंगी?
ताज्जुब है, हम क्या खा-पी कर बड़े हो रहे हैं। क्या सोच रहे हैं :( :( :(

परिवार और किसानी

मैं खेती के बारे में ज्यादा कुछ नही जानता जानता हूँ तो केवल इतना कि मेरे घर में गन्ने के खेती होती है, थोडा बहुत गेहूँ चावल सरसों कभी कभी थोड़ी बहुत दाल भी हो जाती है, जब मैं छोटा था पता नही कहाँ से दिमाग में बैठ गया की डॉक्टर बनना है मुझे याद नही है लेकिन घर वाले बताते है की जब छोटा था तो बोलता था की बड़ा हो कर डॉक्टर बनूँगा और इतने पैसे कमाऊँगा की पूरा घर पैसो से भर दूंगा,
फिर थोडा बड़ा हुआ चीजे समझने लगा जानने लगा तो देखा अपने पास जो भी थोड़ी बहुत खेती है पूरा परिवार उसी में दिन रात मेहनत करता है लेकिन फिर भी परिवार की जरूरते इच्छाए पूरी नही हो पाती थी, थोडा और बड़ा हुआ मुझे में खेत में जाना पड़ने लगा कभी कभी,
लेकिन इन सब के बीच भी जो बात मैं आज गर्व से कह सकता हूँ वो है कि मेरे मम्मी पापा ने हम सब के लिए जो किया वो मुझे तब बिलकुल भी समझ नही आता था लेकिन आज उस सब की महत्ता समझ आ गयी है भले ही बचपन में वो मेरे शौक ना पुरे कर पाए हो लेकिन मेरी जरूरते हमेशा पूरी, मेरे लिए वो सब किया जो वो कर पाए, बचपन से पैसे की कमी देखी थी तो पैसे की कीमत भी जान गया था जल्दी ही, समझ आ गया था की समाज में यदि आपके पास पैसा है तो लोग आपसे हँस कर बात करेंगे, लेकिन यदि आप गरीब है तो आपको अपना कहने वाले भी आपसे सार्वजानिक रूप से मिलने से बचेंगे कहीं उनके साथ वालो के ये ना पता चल जाए ये गरीब किसका मिलने वाला है,
माफ़ी चाहूँगा मुद्दे से भटक गया वो क्या है की कोई लेखक नही हूँ केवल अपनी भावनाए लिखने बैठा तो हल्का छूने से ही घाव ताजा होते गए, वापस आता हूँ किसानी पर
मुद्दा वो ही है किसान की दुर्दशा, जिम्मेदार कौन ? किस्मत ? सरकार ? या किसान ? या हम,
सरकार को तो गाली सभी देते आए है मैं भी देता हूँ, लेकिन आज नही, आज सरकार को गाली देने का मन नही है आज मैं अपने गिरेबान में झाँकने बैठा हूँ, क्योंकि मैं खुद किसान परिवार से हूँ तो थोड़ी बहुत स्थिति समझता हूँ,
ये बात बताने वाली नही है लेकिन दोहरा देता हूँ जो नही जानते शायद वो भी जान/ पढ़/ या समझ पाए, पढ़ने समझने के बाद मनन जरूर करे और यदि समझ आ जाए तो किसान को उसकी मेहनत का फल दिलाने में अपनी भागीदारी जरूर निभाए, जो बात बताना या कहना चाहता था वो ये है की केवल किसान ही है जो साल भर मेहनत करता है बिना किसी CL, EL, Medical, RH, Rest या जितने भी प्रकार की छुट्टियां होती है बिना लिए, उसके घर में शादी या मौत भी होगी तो भी वो अपने खेत में पानी भी लगाएगा, जानवरो को चारा पानी भी देगा, गोबर भी हटाएगा, फसल कटनी होगी तो उसे काटेगा भी क्योंकि यदि समय से ना काटी तो समझो आधी फसल बर्बाद, मतलब पुरे साल जो परिश्रम किया है वो व्यर्थ,
तो भैया बस इतना सा निवेदन है जब भी किसी किसान मजदुर को सब्जी फल बेचते देखे तो उनसे अपनी जरुरत का सामान जरूर ख़रीद ले ,  और एक दो रूपये के लिए ज्यादा मोल भाव न करे, वो भी करे तो बस मुस्कुरा कर बात करे खुश हो कर एक दो रूपये का सामान तो ऐसे भी ज्यादा दे देगा केवल आपबे हँस कर बात करने से, इस बात की गारंटी मैं दे सकता हूँ सामान एक दम अच्छा होगा दिखने में भले ही बिग बाजार या सुपरमार्केट की तरह चमकदार ना हो क्योंकि उस पर कोई पोलिश नही की हुई होगी, सीधे अपने खेत से लाया होगा उस बेचारे के पास ना इतने साधन है ना समय की लोगो को धोखा दे कर अपने भला करने के लिए सोचे, उस से भी बड़ी बात है साधन और समय तो जुटा भी ले लेकिन वो पाप नही उसके मन में, क्योंकि वो ईश्वर का रूप है धरती पर, हम सब का पालनहार है अन्नदाता है
उसे उसके हिस्से का सम्मान अवश्य दे
 

Friday, April 22, 2016

जज्बा: मंजिल की और बढ़ते कदम

आज सुबह का ही बात है ऑफिस आते समय कैब ख़राब हो गयी, तो जब तक दूसरी कैब आती रोड के किनारे खड़े इंतज़ार कर रहा था, सुबह की ताजी हवा खाने के मूड से बाहर निकला तो रास्ते में ये जनाब मिल गए। रिक्शा पर बैठे हुए। अध्ययन में मग्न। मैं रिक्शे से दूर 10 कदम आगे था। फिर क्या मन हुआ, वापस लौटा। उसके पास गया और हेलो किया। जनाब का नाम सुनील है। रिक्शा चलाते हैं। घर लखीमपुर खीरी जिला है। बात हुई। ग्रेजुएट हैं। यूपीपीएससी (UPPSC) की तैयारी में जुटे हुए हैं। जानकर सुखद आश्चर्य हुआ। रिक्शा पर अरिहंत पब्लिकेशन की सामान्य ज्ञान और कुछ और किताबें रखी थी। पूछा तो पता चला कि यहीं आसपास रिक्शा चलाते हैं। पूछने पर कि कमरा कहाँ ले रखा है तो बताया कमरा नहीं लिया हुआ है। ऐसे ही रिक्शे पर ही या कहीं भी रात गुजार देता हूँ। मैंने पूछा - ठंढ के मौसम में ? कहा - कहीं न कहीं अरेंजमेंट हो जाता है। मैंने पूछा - कमरा क्यों नहीं ले लेते हो कुछ लोग मिलकर। फिर बताया कि तब पढाई हो पायगी ? रिक्शा चलाने वालों की आदते प्रतिदिन शाम में दारू पीने की है और 12 बजे तक हल्ला , झगड़ा फसाद करने की है। ऐसे माहौल में कैसे पढ़ पाउँगा। मुझे सहमत होना पड़ा। मैंने तस्वीर लेने का आग्रह किया तो सकुचाते हुए बोला - ले लो लेकिन छापना मत। क्यों बोला , यह नहीं बताऊँगा। इतने में दो सवारी आती हुई दिखी। मेट्रो स्टेशन तक जाना था दोनों को। उसने विदा मांगी। मैंने मन ही मन उसके लिए कुछ मदद की सोचकर अगली बार जल्दी मिलने का अपने आप से वादा किया। सोच रहा हूँ हर महीने प्रतियोगिता दर्पण खरीद कर दे दूँ। कुछ कॉपी भी। वह सफल हो या असफल, लेकिन उसके जज्बे को सलाम करने का दिल तो जरूर करता है।