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Monday, September 19, 2016

उरी और पठानकोट विश्लेषण : भारत और पाकिस्तान

यदि सच पढ़ने सुनने की क्षमता हो तभी पढ़े,

हाल ही में उरी में आतंकी/पाकिस्तानी हमला हुआ, हमारी सेना के 18 जवान शहीद हो गए करीब 30 अस्पताल में घायल पड़े है, हम जैसो की देशभक्ति, गुस्सा और वीरता संभाले नही संभल रही, सबसे पहले तो शहीदों को श्रद्धांजलि देना चाहूंगा साथ ही इस हमले पर कुछ बात भी करना चाहूंगा हो सकता है बहुत से लोगो को हजम ना हो,

हमला कैसे हुआ : विभिन्न समाचार माध्यमो से प्राप्त जानकारी के हिसाब से हमलावर पीछे की तरफ टूटी हुई दीवार से सुबह के समय  अंदर दाखिल हुए, घूमे मुआयना किया तब हमला किया,

गलती किसकी : मुझे अपनी सेनाओं की क्षमता पर कोई शक नही है लेकिन कुछ सवाल जरूर है शायद आपके मन में भी आए हो, या हो सकता है सेना के सम्मान के कारण आप इस बारे में सोच ना पाए हो,  मारे गए चार हमलावरों में से तीन पाकिस्तानी है एयर एक भारतीय कश्मीरी, तीन घुसपैठिये पाकिस्तान से आसानी से भारत की सीमा में आते है यहाँ अपने दोस्त से मिलते है लेकिन हमारी सेना/ पुलिस/ लोकल इंटेलिजेंस सब फेल, कोई भी इन्हें पकड़ नही पाता, अब ये सेना कैम्प का मुआयना करके आते है लेकिन कैम्प की सुरक्षा में मुस्तैद जवानों को कोई खबर नही, उन्होंने "टूटी हुई दीवार" का पता लगाया हुआ और हमले की तैयारी की, यहीं एक और सवाल उठता है क्या हमारे जवानों को अपने ही कैंप की टूटी हुई दीवार नही दिखाई दी कभी, यदि दिकही दी तो क्या ये बात अधिकारियो तक पहुंची, यदि पहुंची तो अधिकारियो ने क्या दीवार बनवाने का प्रयास किया, यदि किया तो दिवार बन क्यों नही पाई, चलो कोई बात नही हो सकता है मंत्रालय ने दिवार बनाने के लिए पैसा ना दिया हो या कोई अड़चन लगा दी हो, लेकिन क्या तब तक कोई तारबंदी, अस्थाई बंकर वहां नही बनाया जा सकता था, यदि बना था तो उस पर तैनात जवान कहाँ था हमले के वक्त, तो सीधी साफ़ बात तो ये है कि हमला तो हमारी भगवान् समान पूजनीय सेना की अपनी कमियों से हुआ है लेकिन अब चुप बैठना कायरता ही है, क्या हमारी सेना/अर्धसैनिक बल अपने कैंप की भी रक्षा नही कर सकते, चलो आत्मघाती हमला था, हमारी सेना ने 17 सैनिकों की कीमत पर 4 सुवरो को मार लिया, और हाँ केवल उरी का ही नही पठानकोट में भी ये ही हुआ था लेकिन अब क्या....

सरकार ने क्या किया : हमारे मंत्री महोदय मौके पर घूम कर आए, हर छोटे बड़े नेता मंत्री ने हमले की निंदा का अपना काम पूरा किया, बड़े मंत्री साहब ने मीटिंग बुलाई चाय पी समोसे खाए, एक और रटा रटाया बयान आया हमले में पडोसी पाकिस्तान का हाथ है, दोषियों को बख्शा नही जाएगा, जनता का गुस्सा शांत होते नही दिखा एक और मीटिंग बुलाई फिर चाय समोसे इस बार मिठाई भी होगी, अब सबूत भी मिलने का दावा किया अब तो लग रहा है अब तो सबूत मिल ही गये है मीटिंग के बाद तुरंत पाकिस्तान बर्बाद हो जाएगा, सेना की कार्यवाही शुरू हो जाएगी, लेकिन होगा क्या सबूत सौंपे जाएंगे पाकिस्तानी उनका आचार डालेंगे बिरयानी में मिला कर खा जाएंगे, सबूत कम पड गये अगली बार ज्यादा भेजना का लव लैटर आएगा, सरकार कुछ नही कर रही चलो हम ही कुछ करेंगे, आओ मिलकर जोर लगा कर लिखते है पकिस्तान मुर्दाबाद, और हो जाएगा पाकिस्तान मुर्दाबाद, एक मोमबत्ती वाली फोटो डाउनलोड करके लगाते है,

तो क्या कर सकते है : तो भैया हम ये कर सकते है पर दबाव बनाओ की हमे नही चाइये 15 लाख, हमे नही चाहिए बुलेट ट्रेन, सबसे पहले हमें शांति चाहिए, शांति कैसे आएगी रोज रोज के इस नाटक से मुक्ति मिलेगी तब पड़ेगी शांति, तो भैया यदि शांति युद्ध में पाकिस्तान को बरबाद करके ही मिल सकती है तो युद्ध हो जाने दो सामने से, कम से हम हमारे जवान सोते हुए तो नही मारे जाएंगे, जब मरना ही तो तो सोते हुए मरने से अच्छा है युद्ध के मैदान में लड़ते हुए शहीद हो, कम से कम दुनिया इज्जत तो रहेगी, सर उठा कर कह तो सकेंगे की युद्ध के मैदान में लड़ते हुए शहीद हुए है, "भगवान् श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है यदि शाँति का मार्ग युद्ध से होकर जाता है तो युद्ध हो जाने दो" जरुरी नही युद्ध आज और अभी हो, जैसे मीडिया कहे ऐसे हो लेकिन जरुरी है दुश्मन को सबक सिखाना, बस ध्यान रहे जो शहीद हुए है उन्होंने देश के लिए ही जान दी है तो देश का भी कुछ कर्तव्य है उनके प्रति,

क्या मिलेगा युद्ध से : मैं भी जानता हूँ युद्ध होगा तो भरी नुकसान होगा, ना जाने कितने वीर सैनिक शहीद होंगे, गाँव के गाँव बर्बाद होंगे, कई शहर भी नष्ट हो सकते है, सरकार की माली हालात खराब हो जाएगी, उद्योग ठप हो जाएंगे, लेकिन जो मिलेगा वो होगा सेना का खोया हुआ आत्मसम्मान, चिरपरिचित दुश्मन से मुक्ति, रोज रोज की तू तू मैं मैं से मुक्ति , तब हम दोबारा अपनी अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा कर सकते है उद्योग चला सकते है खुद को सुरक्षित महसूस कर सकते है, हमारी सेनाओं और हथियारों को जंग लग चुका है जरूरत है उन्हें खोई हुई धार वापस लौटाने की,

तो माननीय प्रधानमंत्री प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी जी, अब ये लव लैटर लिखना बंद किया जाए, सेना को खोया आत्मसम्मान लौटाया जाए, दुश्मन ने सोये हुए सैनिकों को घर में घुस कर मारा है अब हमारी बारी है दुश्मन को उस से घर में घुस कर मारा जाए, और हाँ यदि आपसे नही होता तो तीनों सेनाओं के सरताज राष्ट्रपति जी बैठे ही उन्हें सौंप दिया जाए राज काज, यदि उनसे भी ना होता हो तो तैयार रहो तख्तापलट के लिए, आक्रोश में कब सेनाए आदेश का इंतज़ार करना बंद कर देंगी समझ भी नही पाओगे

Wednesday, September 7, 2016

मलाला और आतंकवादियों के मानवाधिकार

मलाला युसूफजई... वही लड़की जिसने शिक्षा पाने के अपने हक के लिये आवाज उठाई थी...बदले में आतंकवादियों ने उस पर गोली चला दी... गोली लगने के बावजूद वो बच निकली और रातोंरात स्टार बन गयी।

दुनिया भर की मीडिया ने उसे सर पर बैठाया, भारतीय मीडिया तो चार कदम आगे रही।

जानतें हैं उसके स्टार बनने की वजह?

अपने हक के लिये आवाज उठाना?

नहीं...बिल्कुल नहीं...हक के लिये तो हर दूसरा आदमी उठाता है...वजह थी गोली लगना और फिर बच निकलना।

मलाला आज जहाँ भी हैं खुद की नहीं आतंकवादियों की वजह से...मलाला के शोहरत की बुलंदियों पर  पहुँचने में आतंकवादियों का योगदान है...फिर वो जहाँ भी गयी, जिधर भी लेक्चर दिये, आतंकवाद के खिलाफ बोलीं वो सुरक्षा के बड़े घेरे में।

आलोचना नहीं कर रहा बता रहा की जिस तरह से मलाला को यूथ आईकन की तरह पेश किया गया वो बिल्कुल ही बचकाना था। मलाला ने ऐसा कोई तोप नहीं चलाया था ।

उनसे ज्यादा प्रतिभावान लोग पड़े हैं जो अपनी काबिलियत भर के दम पर विश्व को एक नई दिशा देने की क्षमता रखतें हैं...पर उनको गोलियां नहीं पड़ी इस वजह से कोई पूछता नही।
मलाला को गोली लगी इसलिये वो दुनियाभर के लिये क्रांतिकारी हो गयीं।

आज यही क्रांतिकारी कश्मीर मुद्दे पर आतंकवादियों के मानवाधिकार के लिये भाषण दे रही हैं...उन्ही मजहबी कट्टरपंथियों के लिये जिन्होंने गोली मारी थी...हमदर्दी छलक ही गयी।
किसी को भी अपना आदर्श बनाने  से पहले उसके बारे में बड़े अच्छे से सोच समझ लेना चाहिये..वरना यूं ही हड़बड़ी में गड़बड़ी होती है....मलाला ने ऐसा कोई योगदान नहीं दिया जिससे उन्हें लोगो के आदर्श के रूप में रिप्रेजेंट किया जाये.. आदर्श बनते हैं अपने कर्मो से , खुद के साथ हुये हादसों से नहीं।

बाकी मैं मलाला को आतंकवादियों के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाली थोड़ी कम कट्टरपंथी मानता हूँ।