सोशल मीडिया में ऋचा भारती ने जो लिखा (हालांकि मुझे अभी तक नही पता उसने क्या लिखा था) वो उसकी गलती हो सकती है उसकी सजा मिले यहां तक बात समझ आने वाली थी,
लेकिन जज मनीष कुमार सिंह कुरान बाटने की शर्त रखकर आखिर करना क्या चाहते है ? क्या ये ऋचा भारती की धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात नही है ? क्या ये जज द्वारा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके किसी धर्म के जबरदस्ती प्रचार प्रसार कराने का मामला नही है ?
क्या भारत का महान संविधान और कानून इसकी इजाजत देता है ? क्या ये धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के अतिक्रमण का मामला नही है ? क्या जज सीधे कानून के हिसाब से फैंसले नही सुना सकते ? क्या किसी कानून में इस तरह का कोई प्रावधान है कि जज किसी को किसी धर्म का प्रचार करने के लिए मजबूर करे ?
हो सकता है आपको फर्क ना पड़ता हो लेकिन मुझे पड़ता है, इसलिए रजिस्ट्रार जनरल झारखंड ( rgjhc-jhr@nic.in ) और उच्चतम न्यायालय ( supremecourt@nic.in ) को मेल लिखकर अपना विरोध दर्ज कराया है, तुम भी कर सकते हो
एडवोकेट कुमार पवन जी के अनुसार
विधि में प्रावधान है कि
": मजिस्ट्रेट जमानत देते समय न्यायहित मे कोई भी शर्त लगा सकता हैं !
अब किताब में जब प्रावधान पढ़ लिया ..तो जैसा होता हैं ..मच्छिका स्थाने मच्छिका पढ़ने वालो के साथ ?
किताबी ज्ञान रखने वाला मजिस्ट्रेट जमानत देते समय लगा दिया कुरान की पांच प्रति बांटने की शर्त ..?
लेकिन वो भूल गया कि ...अभी ये निर्णय करना है कि क्या ऋचा का कथन से 153क के तहत कोई अपराध घृणा फैलाने या शत्रुता फैलाने का बनता हैं ??
अब गलती हुई कहां...?
Cr.P.C. 437 मे..जमानत देने की बात करता हैं ..न कि निर्णय देने की । जमानत देने के कई आधार है ।उन सब की चर्चा यहाँ सम्भव नहीं है !
लेकिन पहले ये समझ लेना आवश्यक हैं कि ..जमानत देने की आवश्यकता क्यु पड़ती हैं ?
एक तरफ कानून कहता हैं कि ..जब तक अभियुक्त को विचारण के बाद दोषी न मान लिया जाये तब तक उसे निर्दोष माना जाना चाहिए !
तो फिर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होते हि गिरफ्तार क्यु कर लिया जाता हैं ?
यहा विचारण के पूर्व गिरफ्तारी अभियुक्त को निर्दोष मानते हुए भी की जाती हैं ! गिरफ्तार इसलिए किया जाता हैं कि ..
1- कही मुजरिम सजा पाने की आशंका से भाग न जाये । या
2- केस के गवाहो .को धमकाये न ? या
3- सबूतो से छेड़छाड़ न करे !
तो विचारण ( Trial ) के पूर्व ..इन्वेस्टिगेशन के दौरान गिरफ्तार इन्हीं सब कारणो से किया जाता हैं !
और जहाँ मजिस्ट्रेट को लगता हैं कि ..
1- मुजरिम विचारण छोड़ कर भागेगा नहीं । या
2- गवाहो को धमकायेगा नहीं या सबूत से छेड़छाड़ नहीं करेगा तो जमानत पर छोड़ देता हैं !
3- यदि प्रथम दृट्या कोई अपराध ही नहीं बनता ..तो अभियुक्त को जमानत पर छोडना पड़ेगा !
#विचारण के पूर्व जमानत के स्तर पर ..शब्दावली " न्याय के हित का क्या मतलब है ??
यहा न्याय के हित का मतलब है..बिना पक्षपात के , बिना व्यवधान के मामले का ऋजु ( Fair ) विचारण ( Trail ) से हैं .!
इस स्तर पर न्याय के हित का मतलब है....ऋजु विचारण को सुनिश्चित करना !
तो मजिस्ट्रेट ऋजु , पक्षपात रहित मामले के विचारण को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कोई शर्त लगा सकता हैं !
अब क्या कुरान की पांच प्रतियो का वितरण...की शर्त मामले के पक्षपात रहित , व्यवधान मुक्त .. ऋजु विचारण को सुनिश्चित करने के लिये हैं ???
कुरान की पांच प्रति बांटने से किस तरह मामले का पक्षपात रहित ..विचारण सुनिश्चित होगा ??
कदाचित् मजिस्ट्रेट क्या ..हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट का जज भी कोई तार्किक जबाब दे पाये इसका ?
विचारण में अभी ये निर्णय करना है कि क्या ऋचा का कथन / पोस्ट वास्तव में वर्गो के बीच शत्रुता भड़काने वाली ..थी ?
यहाँ मजिस्ट्रेट ने बिना विचारण के ही मान लिया कि ऋचा 153 क की दोषी है ??
और दूसरे समुदाय को संतुष्ट करने का प्रयास करने लगा ?
ये न्याय के हित में नहीं न्याय के विरुद्ध हैं !
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जिन मजिस्ट्रेट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अर्नेस कुमार बनाम बिहार राज्य में, सात वर्ष से कम सजा वाले अपराध में गिरफ्तारी के सन्दर्भ में दिये गये गाईडलाईन के पालन को सुनिश्चित करना चाहिए था वो कुरान की प्रतिया बांटने का आदेश दे रहे हैं ??
ये वकीलो व विधिशास्त्रियो की भी जिम्मेदारी है कि इस पर विचार करे और आवाज मुखर करे !!