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Friday, April 22, 2016

जज्बा: मंजिल की और बढ़ते कदम

आज सुबह का ही बात है ऑफिस आते समय कैब ख़राब हो गयी, तो जब तक दूसरी कैब आती रोड के किनारे खड़े इंतज़ार कर रहा था, सुबह की ताजी हवा खाने के मूड से बाहर निकला तो रास्ते में ये जनाब मिल गए। रिक्शा पर बैठे हुए। अध्ययन में मग्न। मैं रिक्शे से दूर 10 कदम आगे था। फिर क्या मन हुआ, वापस लौटा। उसके पास गया और हेलो किया। जनाब का नाम सुनील है। रिक्शा चलाते हैं। घर लखीमपुर खीरी जिला है। बात हुई। ग्रेजुएट हैं। यूपीपीएससी (UPPSC) की तैयारी में जुटे हुए हैं। जानकर सुखद आश्चर्य हुआ। रिक्शा पर अरिहंत पब्लिकेशन की सामान्य ज्ञान और कुछ और किताबें रखी थी। पूछा तो पता चला कि यहीं आसपास रिक्शा चलाते हैं। पूछने पर कि कमरा कहाँ ले रखा है तो बताया कमरा नहीं लिया हुआ है। ऐसे ही रिक्शे पर ही या कहीं भी रात गुजार देता हूँ। मैंने पूछा - ठंढ के मौसम में ? कहा - कहीं न कहीं अरेंजमेंट हो जाता है। मैंने पूछा - कमरा क्यों नहीं ले लेते हो कुछ लोग मिलकर। फिर बताया कि तब पढाई हो पायगी ? रिक्शा चलाने वालों की आदते प्रतिदिन शाम में दारू पीने की है और 12 बजे तक हल्ला , झगड़ा फसाद करने की है। ऐसे माहौल में कैसे पढ़ पाउँगा। मुझे सहमत होना पड़ा। मैंने तस्वीर लेने का आग्रह किया तो सकुचाते हुए बोला - ले लो लेकिन छापना मत। क्यों बोला , यह नहीं बताऊँगा। इतने में दो सवारी आती हुई दिखी। मेट्रो स्टेशन तक जाना था दोनों को। उसने विदा मांगी। मैंने मन ही मन उसके लिए कुछ मदद की सोचकर अगली बार जल्दी मिलने का अपने आप से वादा किया। सोच रहा हूँ हर महीने प्रतियोगिता दर्पण खरीद कर दे दूँ। कुछ कॉपी भी। वह सफल हो या असफल, लेकिन उसके जज्बे को सलाम करने का दिल तो जरूर करता है।

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