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Wednesday, September 30, 2020

गांधी जी और भुला दी गयी सच्चाई


    बड़ी संख्या में लोग इस भ्रम में हैं कि भारतीय स्वतंत्रता का आंदोलन 1914 - 15 में उस समय प्रारंभ हुआ जब गांधी जी जेल गए और 15 अगस्त 1947 को समाप्त हो गया जब "राष्ट्रपिता" गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता मिल गई । सहस्त्रों वर्षों के इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जब इतने अधिक लोगों को धोखे में रखा गया हो और वे उस धोखे पर विश्वास करते गए हो ।

भारत में गांधीजी के पूर्व भी शताब्दियों से ऐसा स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था जो कुचला नहीं गया था । 1818 में जब मराठा शक्ति क्षीण हो गई तो अंग्रेजों ने यह सोचा कि भारत में स्वतंत्रता युद्ध समाप्त हो गया है परंतु उत्तरी भारत में सिखों की शक्ति जाग  उठी कालांतर में सीख परास्त हुए तो 1857 के विद्रोह की तैयारियां होने लगी और यह विद्रोह इतना अकस्मात और तेजी से हुआ  कि अंग्रेज कांप गए थे उन्होंने कई बार सोचा कि भारत छोड़ दिया जाए ।

जब अंग्रेजों ने पुनः पैर जमाए तो कांग्रेस ने जन्म लिया ।

1885 से ही आप राष्ट्र स्वतंत्रता के लिए पुनः प्रयत्न करने लगा पहले वैधानिक रूप से यह प्रयत्न किए गए और फिर शस्त्रों द्वारा भी अंग्रेजों का प्रतिकार किया जाने लगा । खुदीराम बोस ने 1909 में बम फेंक कर देश की भावना को व्यक्त किया ।


गांधी जी भारत में 1914-15 में आए और इसके 8 साल पूर्व ही भारत के अधिकांश भाग में क्रांतिकारी आंदोलन फैल चुका था स्वतंत्रता संग्राम अभी चिंगारी की भांति सुलग रहा था । गांधी जी और उनके अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों से वह आंदोलन दुर्बल होने लगा । किंतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महाराष्ट्र पंजाब तथा बंगाल के अन्य क्रांतिकारी नेताओं को धन्यवाद देना चाहिए कि लोकमान्य तिलक की मृत्यु के पश्चात गांधी जी का प्रभाव जो जो बढ़ता गया क्रांतिकारी आंदोलन भी प्रखर होते गए । 


   क्रांतिकारी आंदोलन बंगाल और महाराष्ट्र से चलकर पंजाब तक पहुंचा था । मातृभूमि की स्वतंत्रता की वेदी पर सुख सुविधाओं और जीवन की बलि देने वाले वीर सच्चे हुतात्मा थे । उन्हीं के रक्त से भारतीय स्वतंत्रता मंदिर की नींव खींची गई है । लोकमान्य तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित किया महात्मा गांधी ने तो बने बनाए का लाभ प्राप्त किया 1909 से 1935 तक विधान में जितने भी सुधार हुए वे क्रांतिकारी आंदोलनों के कारण हुए ।


गांधी जी ने अपने प्रत्येक भाषण और लेख में क्रांतिकारी आंदोलन की निंदा की इसके विपरीत भारत की जनता हृदय से क्रांतिकारियों की सराहना करती रही।

    गांधी जी ने स्वतंत्रता प्राप्ति में शस्त्र प्रयोग की जितना निंदा की उतनी ही क्रांतिकारी आंदोलन लोकप्रिय होता गया । यह बात मार्च 1931 के कराची अधिवेशन से स्पष्ट है , गांधीजी के कठोर विरोध के बावजूद भगत सिंह के उस साहस की प्रशंसा करते हुए एक प्रस्ताव पास किया गया जो उन्होंने 1929 में असेंबली में बम फेंक कर दिखाया था ।


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