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Sunday, August 20, 2017

भारतीय रेलवे, हम और हादसे

शायद आप सभी जानते होंगे भारतीय रेलवे  विश्व के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक है, आधारभूत सुविधाओं के स्तर पर अभी तक १० में से मात्र ३-४ अंक जुटाने लायक, समस्या कहाँ है और क्या ये जाने बिना उसका उपचार करना अत्यंत मुश्किल है, मेरा निजी अनुभवों के आधार पर मानना है कि पुरानी चीजो की मरम्मत से ज्यादा किफायती  आसान और सुविधाजनक उन्हें बदल देना होता है, ये बात रेल के परिपेक्ष में थोड़ी जटिल हो जाती है, सबसे पहले तो पूरे रेलवे को बन्द करके नए सिस्टम से बदलना एक असम्भव सा काम है, तो इस विचार को थोड़ी देर के अलग रख देते है अब सुधार का एक ही विकल्प बचा वो है सिस्टम की मरम्मत, जैसा कि अभी बताया है रेल नेटवर्क बहुत ज्यादा विस्तृत है तो सुधार ना तो आसानी से संभव है ना ही एक दिन में लेकिन करना तो है ही,

अब किसी भी सुधार बदलाव की बात करे तो जो बात सबसे पहले देखनी पड़ती है वो है जेब, मतलब मेरी जेब मे कितना धन है, यदि धन बेहिसाब है तो मुझे देखने सोचने की कोई जरूरत नही महसूस होगी जो चाहिए होगा मन होगा तुरंत ले सकता हूँ बदल सकता हूँ, यदि जेब मे धन सीमित है तो मुझे देखना पड़ेगा कि क्या मुझे इसकी जरूरत वास्तव में है, क्या नया लिए बिना काम चल सकता है, क्या इसी को सही किया जा सकता है,
जैसे ही कोई हादसा होता है हमारा गुस्सा सातवें आसमान पर होता है, ऐसे में सरकार की निंदा करना हमारा फर्ज बन जाता है, वैसे निंदा रस मुझे अत्यंत प्रिय है बड़ा मजा आता है किसी की भी निंदा करने में, खैर मुझे नही लगता ये समय निंदा का है अभी समस्या पर चिंतन करते है,

याद आया जब भी कोई रेल हादसा होता है हमे रह रह कर रेल का बढ़ता किराया याद आता है, सबको चिंता होती है कि प्लेटफॉर्म टिकट २ रुपये से १० रुपये हो गया,  किराए में भी अच्छी खासी बढ़ोतरी हो गयी, प्रीमियम ट्रेनों में तो लूट मचाई हुई है डायनामिक प्राइसिंग के नाम पर, इस सब के बावजूद भी देश की ७० प्रतिशत यातायात जरूरते भारतीय रेलवे ही पूरा कर रहा है, कैसे पूरा कर रहा है ये जानना है तो रेलवे के किसी ड्राइवर या गैंगमैन से बात करो वास्तविक स्थिति समझ आ जाएगी, पटरियां घिस चुकी है, सिग्नलिंग सिस्टम पुराने हो चुके है, नवीनीकरण और सुधार समय रहते क्यों नही किये गए, इसके दो कारण हो सकते है या तो जिम्मेदार अधिकारी इस योग्य नही थे कि वो जरूरत समय पर भाँप सके, या फिर सरकार ने उन अधिकारियों की नही सुनी हो, नया सुनने के भी दो कारण हो सकते है या तो सुनना ही नही चाहती हो, या बजट ना हो सरकार के पास, बजट ना होने का एक ही कारण होता है आमदनी अठन्नी खर्चा रुपया, आमदनी क्यों नही बढाई गयी इस पर लिखूंगा तो पोस्ट राजनैतिक होने का खतरा है जो मैं अभी लेना नही चाहता, क्योंकि मुझे अपने मुद्दे से नही भटकना है,

१० में से ३-४ अंक जुटाने लायक  रेलवे अभी भी ७० प्रतिशत जरूरते क्यो पूरी कर रहा है, क्योंकि बाकी कोई भी यातायात का साधन ना तो आज भी इतना सुलभ है ना इतना सस्ता है, ना इतना आरामदायक है ना सारे देश को एक डोर में जोड़े हुए है, सुविधा के मामले में यदि बाकी मौजूदा यातायात साधनों से मुकाबला करे तो रेलवे अभी भी सबसे कम कीमत में सबसे ज्यादा सुविधा देता है, सुलभता यानी आम आदमी तक पहुंच किसी को बताने की शायद ही जरूरत हो, हादसा हुआ है और सुरक्षा की बात ना हो तो पोस्ट का कोई अर्थ नही रह जाता, सुरक्षा में तैनात जीआरपी और आर पी एफ के जवान थानों और ट्रेन में बैठ कर जो दारू पी रहे है वो रेलवे किसी दूसरे ग्रह या देश से नही लाया है सब हमारे ही भाई भतीजे, चाचा ताऊ, यार रिश्तेदार या पड़ोसी है,

इस वाली सुरक्षा की बात नही है बात रिस्क फैक्टर की है, ट्रेन में चलने में जान का खतरा है, बड़े दुख की बात है
वैसे रिस्क फैक्टर ही देखा जाए तो सड़क हादसों में मरने वालो का कहीं कोई आंकड़ा मीले तो तुलना करके मुझे भी बता देना,

क्या हवाई जहाज से तुलना करनी है, ठीक है भाई वो भी कर लो, बस ध्यान रहे जितने यात्री पूरे दिन में दिल्ली से मुम्बई सारी फ्लाइट में मिलाकर जाते है उससे कम से कम दोगुने तो अकेली देहरादून एक्सप्रेस ले जाती है, बाकी हिसाब में थोड़ा कच्चा हूँ हिसाब करके मुझे भी बताना मत भुलना,

इस सब के बावजूद मुझे पूरा विश्वास है रेलवे सही रास्ते पर जा रहा है, बुनियादी ढांचागत सुधारो पर काम तेजी से हो रहा है, वो भी  दिख रहा है, लेकिन इस तरह कब  हादसो पर लगाम लगाना जरूरी है, बीमार मानसिकता वाले जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को सजा मिलना भी उतना ही जरूरी है वो तो सुना ही होगा "भय बिन होय ना प्रीत "

जिन्होंने अपनो को खोया है इस हादसे में उनके साथ मेरी पूरी संवेदनाए है, एक बार फिर से कहता हूँ हमे अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी जिम्मेदारी से करना होगा नही तो आज वो पीड़ित है कल कोई और होगा एक दिन हमारा नम्बर भी जरूर आएगा, इसीलिए समय रहते जाग जाओ

अतुल शर्मा - Atul Sharma


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