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Monday, February 6, 2017

फिट है तो हिट है

पूर्वोत्तर और मांसाहार का चोली और दामन का साथ है...कोई कुछ भी कर ले हमारे मांसाहार छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता. मनुष्य प्रथम श्रेणी का उपभोक्ता नहीं है . हम तो यही मानते है कि  घास खाना बकरियो का काम है हम सर्वाहारी हैं अपने खाने का बंदोबस्त कर लेंगे..बकरियों को घास खाकर मोटी तो हो लेने दो. किसी न किसी दिन लिन्डेमाँन के 10 प्रतिशत ऊर्जा स्थान्तरण वाले नियम का प्रायोगिक सत्यापन कर ही लेंगे.

मेरे नार्थ इन्डियन मित्र जब जब शाही पनीर , कढ़ाई पनीर ,,,कूकर पनीर,,और तवा पनीर जैसे दूध के बने अनगिनत  हज़ारो आयटम गिनाने लगते है तो हम जैसे चिकेन और मटनछाप लोगो को फिर से चिकेन और मटन की तलब लग जाती है...और उसी दिन धरती से एक डेढ़ दो  किलो का देशी या  बायलर मुर्गा कुकर की चार पांच सीटी में निपट जाता है.

देखो ! दुनिया में कोई चीज गलत या सही नहीं होती. यहाँ तक की जीव हत्या भी एक साइड से जस्टीफ़ाइड ही होती है .मरने वाले को हत्या गलत लगती है मारने वाले को नहीं . मारने वाले आततायी होते हैं , उन्हें अफ़सोस तक नहीं होता . वैसे  भी उत्तर भारतीय लोग बहुत ही कोमल होते हैं ये चिकेन की गर्दन नहीं उड़ा सकते . खाने में शाकाहार को ज्यादा वरीयता देते हैं. हमारे यहाँ  शाक वाक ऐसे तो  कभी बनता नहीं हाँ  कोई विशेष मौका हो तो अलग बात है. यही लगभग सभी पूर्वोत्तर वालों की हकीकत है.

उत्तर भारतीय लोग शाक खाते है , शायद शाक खाने वाले लोग कोमलांगी  होते होंगे  इसलिए तो पनीर को भी चाकू से काटते हैं.जितनी देर में ये  250 ग्राम पनीर को चाकू से कभी आयताकार तो कभी वर्गाकार आकृति में काटते रहते है उतनी देर में हमारे यहाँ छोटे छोटे भी  बच्चे चिकेन की गर्दन मरोड़ कर उसके लेग पीस को अलग कर उसमें हल्दी लगाकर आधा किलो प्याज के साथ ढक देते हैं.

फिलहाल  !  खाने पर मत जाइए ,,, बात समझिये.

असल में होता ये है कि गलत या सही होना हमारे नजरिये पर निर्भर करता है .जो लोग दुनिया के बाकी लोंगो को चिकेन समझकर उनकी गर्दन उड़ा देते है आप को उनकी ये हरकत बेशक गलत लगती हो पर उन्हें अपने इस कृत्य पर रत्ती भर भी अफ़सोस नहीं होता. हम लोग चिकेन खाकर  जिस तरह से डकार मारते है वैसे ही ये भी  लोगों की गर्दन उड़ाने के बाद अट्ठहास करते होंगे. विश्व के साथ साथ भारत में भी गर्दन उड़ाये जाते रहने का पुराना इतिहास रहा है जो कि गजनी से लेकर आज तक बदस्तूर जारी है. इतिहास गवाह है भारत में होने वाली ज्यादातर घुसपैठ उत्तर भारत से ही हुई है. गजिनी , गौरी , बाबर  ,,नादिर शाह और ऐसे न जाने कितनों ने ही भारत में घुसने के लिए उत्तर के रस्ते को चुना.
जो भी आया उसने घास फूस की तरह काटा.हम प्रतिरोध करने में  असमर्थ रहे. उनकी अधीनता तक स्वीकार कर ली.
कहाँ  कमी थी ?
हम बिनम्र तो थे .
हम बलशाली भी  तो थे . तो  फिर !
लेकिन हम "फिटेस्ट " नहीं थे.क्यों की हमारे अंदर  दुश्मनो का गर्दन उतारने का वह तेवर नहीं था जो की उन हमलावरों के अंदर था.

अब आप की बात करते है फिर से .आप शाक इसलिए खाते हैँ क्यों की आप के अंदर दयाभाव का  अनावश्यक ओवरफ्लो होता रहता है. अतः आप चिकेन को एक झटके में उसकी गर्दन से अलग नहीं कर सकते. आपके हाथ  चिकेन तक काट नही सकते युद्ध क्या लड़ेंगे.जो कौम चिकेन तक नहीं काट सकती  उससे दुश्मनों के सर काटने की उम्मीद बेमानी है .क्या पता हारने की एक वजह ये भी रही हो की देश पर हमलावरों के सिर काटते समय आपके सैनिको के हाथ काँप रहे हों .पृथ्वीराज चौहान , महाराणा प्रताप जैसे न जाने कितने  वीर क्या पता अकेले पड़ गए हो . सलाम है उन्हें की उन्होंने मरते दम तक लड़ाई तो की. नार्थईस्ट वालों के कद छोटे होते हैं.हम  ज्यादातर मांसाहार पर  ही जिन्दा रहते  हैं .याद करिए ! जिस बख्तियार खलजी के  दम पर गौरी ने उत्तर भारत से लेकर  बंगाल तक कब्ज़ा कर लिया था. उसी बख्तियार खलजी का पूर्वोत्तर में क्या हश्र हुआ. इसके लिए इतिहास पर  फिर  से नजर डालिये .

जैसा कि आपको मालूम है कि दुनिया  " सरवायवल ऑफ़ द फिट्टेस्ट" की थ्योरी पर चलती है. चाक़ू से पनीर को दांत पीसपीस कर काटने वालों को ये बात समझनी चाहिए.कोमलता शारीरिक नहीं होनी चाहिए.शारीरिक कोमलता हमे सहन शील होने पर मजबूर कर देती है. मजबूरी  में दिखाई गयी सहनशीलता और कुछ नहीं बस कायरता का  ही एक छदम् रूप है.

पनीर वालों  ! सहनशील नहीं शक्तिशाली बनो. फि्टेस्ट बनो. चिकेन खाना जरुरी नहीं पर काटना  जरुर सीख लो. वरना सही समय पर हाथ कापेंगे. अनावश्यक दयाभाव  के प्रदर्शन से दूर रहिये .क्यों की डार्विन अंकल कह के गए हैं -'जो सबसे फिट है वही दुनिया में रहने के लायक है"..आखिर भले ही हिंसा गलत तो है पर  जब बात सुरक्षा की हो तो  बेहद जरुरी है .

  "काफी पहले कहीं पढ़ा था याद आया तो आप सब के साथ साझा कर लिया"

www.paglapandit.blogspot.com

4 comments:

  1. Par hamare samaj ko laat khane ki aadat ho gyi h. Har baat ka prove chaiye aur prove de b do to b aakhe band kar lenge ki hme kya matlab dekha jayega.

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