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Thursday, October 1, 2020

गांधी जयंती : सत्य के साथ मेरे प्रयोग

  गांधी जयंती विशेषांक
मेरी तरह आप सब भी बचपन से लेकर आज तक बार बार ये ही पढ़ा होगा कि गांधी जी सत्य और अहिंसा के बहुत बड़े पुजारी थे 
   
सत्य और अहिंसा की ऐसी प्रतिमूर्ति मिलना असंभव है । गांधीजी केवल उन्हीं का विरोध नहीं करते थे जो स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए शस्त्र प्रयोग करना चाहते थे बल्कि उन लोगों का भी विरोध करते थे जिनके विचार गांधी जी के विचारों से भिन्न थे गांधीजी की अप्रसन्नता का एक पात्र सुभाष चंद्र बोस भी थे जहां तक मुझे पता है सुभाष चंद्र 6 वर्षों तक जब देश से बाहर रहे तो गांधीजी ने उन पर प्रतिबंध का कोई विरोध नहीं किया । सुभाष चंद्र बोस पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहते हुए कभी गांधी जी की नीति पर नहीं चले, फिर भी सुभाष चंद्र बोस इतने लोकप्रिय हुए कि गांधीजी की इच्छा के विरुद्ध डॉ पट्टाभि सीतारमैया के विरोध में प्रबल बहुमत से चुने गए और डॉक्टर पट आप भी सीतारमैया के आंध्र से भी सुभाष चंद्र बोस को ही अधिक मत मिले । गांधी जी इस कारण अथाह क्षोभ में थे तब उन्होंने कहा कि "सुभाष की जीत गांधी की हार है" गांधी जी के मन में सुभाष चंद्र बोस के प्रति विष भर आया और द्वेष अग्नि में जलते हुए वे त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में नहीं गए और बहानेबाजी से राजकोट में अनशन और सत्याग्रह छेड़ कर बैठ गए । जिस समय तक सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष की गद्दी से नहीं उतार दिया गया तब तक उनका क्रोध शांत नहीं होगा ।
   सुभाष चंद्र बोस के दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने और यहां से बाहर जाने की घटनाएं यह प्रकट करती हैं कि गांधी जी किस प्रकार कांग्रेस से अपना काम निकाल लेते थे । 1934 के बाद से ही गांधी जी बार-बार यही कहते रहे कि वह कांग्रेस के चार आने के सदस्य भी नहीं है और उनका कांग्रेस से कोई संबंध नहीं है किंतु सुभाष चंद्र बोस जब दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए तब गांधी जी के क्रोध से यह पता चल गया कि वही कांग्रेश हैं और हर कार्य में खूब हस्तक्षेप करते थे जबकि वह कहते थे कि उनका कांग्रेस से कोई संबंध नहीं है । 
   झूठ बोलने का इससे सुंदर उदाहरण और कहां मिलेगा

#सत्य_के_साथ_मेरे_प्रयोग

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