आज ही की बात है, अभी दोपहर को ऑफिस से आते है आदतन फेसबुक खोल कर देखा, मेरे पसंद के एक पेज #दूरदर्शन की पोस्ट सबसे ऊपर चमक रही थी, पोस्ट देखते ही लालसा बढ़ी चलो पढ़ लेता है जरूर अच्छी होगी,
हमेशा बचपन को वापस दिलाने वाली पोस्ट होती है आज भी वही बचपन का राग अलापा था, जिंदगी की इन अनेको भागदौड़ परेशानियों के बीच फिर से एक मुस्कराहट उड़ेल गया चेहरे पर,
मुद्दा वो ही था मेरी दुखती रग #पढाई से जुड़ा हुआ, आज तख्ती की फोटो डाली है पता नही कहाँ कहाँ से निकाल कर लाता है... अब यादे ताजा हुई तो मैंने भी अपनी लेखनी संभाल ली बचपन में मेरे पास जो तख्ती थी उसको लेकर मेरे मन में एक टीस हुआ करती थी उन दिनों, मेरी तख्ती पुरानी सी, आधा हत्था टूटी हुई, मोटी सी हुआ करती थी जबकी सभी दोस्तों के पास एकदम नई नवेली सुडौल, तो उनकी तख्तियों से मुझने अंदर ही अंदर हीन भावना और जलन होती थी जो आज से पहले मैंने किसी से ही कही, घर पर नई तख्ती के लिए भी नही बोल सकता था एक तो तख्ती अभी तक सही सलामत थी और दूसरी घर की स्थिति जानता था की जब तक टूटेगी नही मांगने से भी दूसरी नही मिलेगी तो कभी प्रयास ही नही किया, आज अनायास ही उस बेडौल से खिलौने की याद आ गयी
दरअसल वो हमारी खानदानी तख्ती थी 😜😜 मेरे चाचाओं से लेकर छोटे भाई तक सबने उसी से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की, आज सोचता हूँ तो उसकी सारी कहानी समझ आती है पुरानी थी इसलिए मोटी और मजबूत थी, हत्था शायद मुझे मिलने से पहले ही आधा टूट चूका था शुरू में मुझे भी बड़ा चाव था तख्ती लिखने का स्कूल से आते ही सबसे पहले तवा उठा कर तख्ती साफ़ करने के बाद तख्ती पर तवे की कालिख पोतना, सुखाने के बाद उसे झाड़ना फिर घास के पत्तो से चिकना करना और फिर किसी दवाई की कांच की बोतल से उसे घोटना, उसे बाद सीधी लाइन खींचना लिखने के लिए, लेकिन इसके बाद सारी मेहनत बरबाद करने का वक्त आता था, हाहाहा अरे मतलब तख्ती लिखने का .... क्योंकि मेरी लिखाई मेरी सूरत से भी बुरी थी ... ओ हाँ थी नही आज भी है.. कभी नही सुधार पाया... कई बार कोशिस की लेकिन हर बार मंजिल से पहले ही थक कर काम लिखाई सुधारने का प्रयास बीच में ही अटक गया
एक आम लेकिन खास भारतीय नागरिक के अंतर्मन से निकले शब्द है, किसी अख़बार या टीवी शो पर नही मिलेंगे
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Friday, July 8, 2016
तख्ती
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