आज एक मई है अंतराष्ट्रीय मजदुर दिवस, सुबह से काफी कुछ देखा, सोशल मीडिया पर काफी लोग मजदुर दिवस की बधाइयां दे रहे है, मैं अभी तक ये ही सोच रहा हूँ कितने मजदूरो को पता है की आज उनका दिन है, आज उनके नाम लोग लोग लेख लिखेंगे कोई भला मानुस उनका मुह भी मीठा कराएगा इसमें मुझे संदेह है, हाँ कहीं कोई सफ़ेद कुर्ते पजामे पहने नेता जी मजदूरो के सम्मान में दो शब्द कह कर अपने कुर्ते की चमक बढ़ाए रखने के लिए बजट की भी घोषणा कर सकते है लेकिन क्या वो बजट किसी मजदुर तक पहुंचेगा ये बताने की शायद जरुरत नही है,
मैं सोच रहा हूँ की बधाई दूं तो किस मुँह से दूँ, सोच रहा हूँ यदि वास्तविक जीवन में किसी मजदुर को मजदुर होने की बधाई दूं तो कैसा रहेगा, सोच कर ही दिमाग के तोते उड़ जा रहे है, मजदुर होने की बधाई ????? क्योंकि मजदुर कोई शौकिया नही होता, सही मायने में वो मजदुर नही मजबूर होते है नियति के सामने, क्योंकि 45℃ की चिलचिलाती धुप में शारीरिक श्रम करना शायद ही किसी को पसंद आए, उनका मन भी होगा की जिस शानदार बिल्डिंग को बनाने के लिए वो अपना खून पसीना जला रहा है कभी उसे भी उसमे रहने का मौका मिले, कहीं कोई लाचार माँ अपनी कलेजे के टुकड़े को लटकाए ईंट ढो रही है कहीं कोई मासूम अपने वजन से ज्यादा बोझा उठाए चला जा रहा है और हम उन्हें बधाई दे रहे है मजदुर दिवस की उन्हें बधाई की नही एक अदद जिंदगी की जरुरत है, माफ़ी चाहूँगा मैं किसी मजदुर को उसके मजबूर होने की बधाई नही दे पाउँगा
बधाई नही दे सकता लेकिन उनकी जिजीविषा को सलाम जरूर करूँगा, उनसे माफ़ी जरूर माँगना चाहूँगा की जिसके वो हक़दार हम उन्हें वो सम्मान नही दे पाए, एक घरौंदा नही दे पाए, उनके बच्चों को एक स्कूल नही दे पाए, दो समय का भरपेट भोजन नही दे पाए, उनकी पीढ़ियों को इस मजदूरी/मज़बूरी से निकलने का रास्ता नही दे पाए
सोचता हूँ यहाँ ऎसी में बैठ कर फोन पर बड़ी बड़ी बाते लिखने से थोडा आगे बढू घर से निकल कर किसी कंस्ट्रक्शन साईट पर जाकर उनके काम में थोडा हाथ बटाऊ, उनकी परेशानियां सुनु, गर्मी से बचने के लिए फ्रिज ना सही एक ठन्डे पानी के मटके का ही इंतज़ाम कर पाऊ, कम से कम एक दिन उन्हें अच्छे से भर पेट खाना खिला पाऊ, उनके बूढ़े माँ बाबू, बीवी छोटे बच्चों से मिलवा पाऊ, लेकिन शायद मुझ में अभी वो जज्बा नही की उनके लिए घर से निकल पाऊँ....
काश कभी उनका सामना करने की हिम्मत जुटा पाऊँ उनसे नजरे मिला पाऊँ....
एक आम लेकिन खास भारतीय नागरिक के अंतर्मन से निकले शब्द है, किसी अख़बार या टीवी शो पर नही मिलेंगे
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Sunday, May 1, 2016
मजदूर दिवस या मजबूर दिवस
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