हाँ तो भैया जी लो हम फिर बैठ गए अपनी कलम दवात ( मोबाईल) लेकर, क्या पूछे ? आज क्या लिखा है ? अरे भैया अभी तो बैठे है, सोचेंगे... फिर लिखेंगे...
वो बात क्या है की हमारी लेखनी हमारे दिमाग से ज्यादा तेज चलती है, लेखनी को बस लिखने की पड़ी है जबकि अभी तक सोचा कुछ है नही दिमाग ने की लिखना क्या है, फिर मन के एक कोने से आवाज आई क्या हमेशा दिमाग की लगाए रखते हो कभी हमारी भी सुन लिया करो, तुमरे ही है हम भी हम से ऐसा बैर काहे
हाँ तो भाई जी अंतत: लेखनी को मौका मिल ही गया चलने का, चलो तो आज मन की निकाल लेता हूँ क्योंकि मस्तिष्क की तो रोज लिखता ही आया हूँ, जानता हूँ अभी कोई पढ़ने वाला नही है लेकिन एक उम्मीद है एक दिन जरूर पढ़ेंगे, नही भी पढ़ेंगे तो मैं तो खुद को पढूंगा ही ऐसे भी खुद के मन की भड़ास निकालने को लिखता हूँ
खुद की उलझनों में ही उलझी पड़ी है जिंदगी, जब भी अकेला होता हूँ ये उलझने और बढ़ती जाती है क्योंकि काम कुछ होता नही, इसीलिए आज फिर ये तन्हाई मेरे अंदर कहीं छिपे शैतान को जगाने में लगा, मन का शैतान ना जगे इसलिए लेखनी उठा ली, शैतान....
वाह क्या बात है आख़िरकार मिल ही गया लिखने को...
आज अपने अंदर छिपे शैतान की बात करता हूँ, बचपन से लेकर आज तक ना जाने कितने अपराध किये है जिन्हें ना मैं खुद भी आजतक माफ़ नही कर पाया हूँ, जब भी मेरे अंदर का शैतान जागता है कुछ ना कुछ गलत करके ही जाता है जिसे किसी से कह सकने की हिम्मत आज तक नही जुटा पाया...
शायद आज भी नही... लेकिन हाँ अब एक विश्वास जरूर आ गया की जल्दी ही अपने अपराधो को मन के सबसे अँधेरे कोने से बाहर निकलूंगा और ज्यादा छिपाने की हिम्मत नही बची अब... जिस जिस का अपराधी हूँ हर एक से माफ़ी माँगूँगा लेकिन चाहूँगा की माफ़ी नही सजा मिले मेरी हर गलती की...
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