काँवड़ यात्रा : मेरा अनुभव
#भाग_२
#भाग_१ #यात्रा_पूर्व_तैयारी से आगे,
#हरिद्वार_प्रस्थान
सभी जरूरी सामान जुटाने के बाद, मेरा कार्यक्रम २६ तारीख की शाम को दिल्ली से हरिद्वार के लिए प्रस्थान करने का था, बस मार्गो पर भीड़, जाम, रूट डाइवर्जन का कोई भरोसा नही था तो मेरी प्राथमिकता रेल मार्ग से जाना था, सीट आरक्षित कराने का सोचा तो किसी भी ट्रेन में कन्फर्म सीट मिलने का कोई चांस नही था, अंततः सामान्य श्रेणी से यात्रा के लिए जाना ही निर्धारित हुआ, आफिस में २६ जुलाई की प्रातःकालीन सेवा समाप्त करने के बाद घर पहुँच कर तुरन्त हरिद्वार के लिए प्रस्थान करना था, ढाई बजे तक घर पहुंचा फिर खाना खाया, अंतिम बार सभी जरूरी सामान देखा रखा, और नहा कर घर के मंदिर में भगवान के सामने हाथ जोड़कर माँ बापू के चरण स्पर्श कर हरिद्वार के लिए निकल लिया, समय साढ़े तीन हो चुका था, मेट्रो में सवार होकर उपलब्ध ट्रेनों के लिए जानकारी ली, घर से दिल्ली ऋषिकेश पैसेंजर से जाने का प्लान करके निकला था लेकिन उससे पहले दिल्ली सहारनपुर हरिद्वार डेमू जाने वाली थी तो तुरंत UTS से टिकिट बुक किया,
दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा तो ट्रेन प्लेटफार्म नम्बर ७ पर लग चुकी थी, चलने में कुछ ही मिनट शेष थे, थोड़ी मेहनत के पश्चात एक कोच में सीट का सीट जुगाड़ भी हो गया, हम भी बैठ गए बैग को गोद मे दबोचे, क्योंकि बहुत जल्द भयानक भीड़ होने वाली थी,
ट्रेन लगभग अपने नियत समय पर प्रस्थान कर गयी आने वाले प्रत्येक स्टेशन पर भीड़ बढ़ती जी रही थी और मैं सिकुड़ता, मेरठ आते आते रोजाना वाली यात्री लगभग समाप्त हो गए और कांवड़िया पूरी ट्रेन में भर चुके थे, मैं अभी तक भी अपनी सीट पर काबिज था,
लेकिन ये सीट शायद ज्यादा देर मेरे पास नही रहने वाली थी उसी डिब्बे में ठीक मेरे सामने एक महिला अपने चार छोटे बच्चों के साथ जैसे तैसे खड़ी थी जिनमे से एक को मैं पहले ही अपने साथ एडजस्ट कर चुका था, भीड़ में उनकी हालत देख कर दया तो आ रही थी लेकिन सफर लम्बा था इसलिए मैं भी सोच रहा था सीट गयी तो फिर पूरे रास्ते खड़े ही जाना पड़ेगा और रात में हरिद्वार पहुंच कर मुझे तुरंत ही वापस पैदल काँवड़ यात्रा भी आरम्भ करनी है तो मैं सीट पर जमा हुआ था, लेकिन अनंत भीड़ में उनके खड़े रहने की हिम्मत जवाब दे गई तो वे मेरे पैरों के बीच मे बैठने की कोशिश करने लगी, अब मेरी बेशर्मी का घड़ा भी शायद भर गया था तो मैंने उन्हें अपनी सीट दे दी लेकिन इस के साथ ये भी बोल दिया कि यदि मुझे जरूरत होगी तो मुझे बैठने देना,
अब वो बेचारे हर स्टेशन पर मुझे बैठने के लिए पूछने लगे लेकिन मैं थोड़ा हिम्मत जुटा कर हर बार मना करता रहा और अपने खड़े होने के लिए दीवार के सहारे जगह बना ली थी, सहारनपुर आते आते मुझे भी बैठने की जरूरत महसूस होने लगी, पैर तक चुके थे उन्होंने फिर पूछा तो मैंने बैठने के लिए हां कर दी, इस से पहले की मैं बैठ पाता मेरे थोड़ा खिसकते ही मेरे पैरों के पास बैठे एक बाबा तुरंत लेट गए अब वहां मेरे खड़े होने लायक भी जगह नही बची, तो वो तीन वहां कैसे खड़े हो पाते तो मैं फिर खड़ा ही रह गया, अब ये लगभग फाइनल हो चुका था कि मुझे हरिद्वार तक खड़े हुए ही जाना है वो भी एक पैर पर, जैसे जैसे हरिद्वार नजदीक आ रहा था ट्रेन में भोले शंकर के जयकारे बढ़ते जा रहे थे,
खैर जैसे तैसे ट्रेन करीब एक बजे हरिद्वार पहुंच गई अपने निर्धारित समय के एक घंटा की देरी के साथ, ट्रेन में ही अधेड़ सहरात्री जो सकौती से आए थे उनसे थोड़ी बातचीत हुई वो अकेले थे एक कागज पर किसी का नंबर लिखा कर लाए थे जो उनके गाँव से ही थे और काँवड़ लेने आए हुए थे, रास्ते मे तीन बार फोन मांग कर वो उनसे बात कर चुके थे कि कहाँ पहुंचे तो इतना मैं भी जान गया था वो काँवड़ लेने ही जा रहे थे,
ट्रेन से उतरते ही वो मेरे साथ ही रहे, मुझे भी एक साथी की जरूरत थी जो नहाते समय मेरे समान की देखरेख कर सके, हालांकि वे भी अनजान थे लेकिन थोड़े संसय के साथ मैंने उन्हें साथ रहने दिया,
ट्रेन से उतरकर बाकी यात्रियों की तरह हम भी पैदल हर की पैड़ी की और चल दिये, हर की पैड़ी पहुंच कर सबसे पहले हमने बाकी सामान जुटाया जैसे काँवड़ बैग, जल की कैनी, एक बड़ा भगवा गमछा, प्रसाद , धूप, और बैठने सामान रखने के लिए एक पॉलीथिन सीट,
हर की पैड़ी पहुंचते ही सारी थकान भाग चुकी थी, भोले बाबा का जयकारा लगाते हुए मैं भी गंगा मैया को प्रणाम करके घाट पर पहला कदम रखा,
तीसरे का इंतजार है
ReplyDeletehttp://paglapandit.blogspot.com/2019/08/blog-post_29.html हाजिर है भाग ३
Delete