भाग ३ में काँवड़ यात्रा के पहले दिन हरिद्वार से नारसन की यात्रा
और भाग ४ में काँवड़ यात्रा के दूसरे दिन नारसन से मंसूरपुर की यात्रा पढ़ी,
अब भाग ४ से आगे
रात में सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे से थे, तो रात भर मच्छर ना खुद सोए ना हमे सोने दिया, तीसरे दिन की शुरुआत सुबह साढ़े तीन बजे उठकर दैनिक क्रियाओं शौच स्नान आदि से निवर्त होने के पश्चात करीब साढ़े चार या पांच बजे तक हमने आज की यात्रा शुरू कर दी,
रात में काँवड़ यात्रियों में सुप्रसिद्ध नावला की कोठी पर रुकने का प्लान था लेकिन जैसा कि पहली पोस्ट में पढ़ा हम उस से पहले ही रुक गए, रात में निर्धारित हुआ कि हम नावला कोठी से नही बल्कि नावला गाँव से होते हुए जाएँगे, क्योंकि गाँव से जाना वाला रास्ता छोटा पड़ता था कपिल और चेतन के अनुसार, हालांकि मैंने गूगल मैप पर देखा तो गाँव वाले को थोड़ा बड़ा ही दिखा रहा था पर वो दोनों पहले भी कई बार आ चुके थे तो मैंने उनकी बात रखते हुए उसी रास्ते जाने का फाइनल कर दिया,
इस रास्ते पर हमें हम जैसे इक्का दुक्का ही कांवड़िया मिले, करीब एक घण्टा चलने के बाद हम नावला गाँव पहुंचे अब भूख भी लग गयी थी तो यहां से नाश्ता करके चलने का प्लान किया, गाँव के बाहरी छोर पर ही एक दो दुकान थी लेकिन अभी बन्द थी, लेकिन एक चाय की टेम्परेरी दुकान चलती मिल गयी जो काँवड़ सीजन के लिए ही लगी होगी, लेकिन नाश्ते के नाम पर कुछ भी नही था खाने को, आसपास कोई जनरल स्टोर भी नही मिला ढूंढने से, लेकिन थोड़ा मेहनत करने पर एक मिठाई की दुकान पर पकौड़ो की तैयारी होती दिख गयी, थोड़ी देर लगी लगीं उसने हमें आलू के पकौड़े बना कर दे दिए, उबले आलू को नमक मिर्च मसाला मिला कर बेसन में डूबा कर तल कर,
जब तक हम लेकर गए चाय भी बन गयी थी, गरमागरम चाय पकौड़ो से दिन की शुरुआत हुई,
गाँव काफी लंबा और साफ सुथरा था अंदर भी कई जगह भंडारे और काँवड़ सेवा शिविर दिखे, धीरे धीरे इस रास्ते पर भी दो चार कांवड़िया दिखने लगे थे, लेकिन रास्ता गाँवो के अंदर से जा रहा था हम भी गाँव दर गाँव पर करते हुए आगे बढ़ रहे थे, मैं और बचपन का सहपाठी कपिल पीछे पीछे, चेतन और कपिल आगे आगे, धीरे धीरे अब गैप बढ़ता जा रहा था कपिल बिल्कुल नही चल पा रहा था और उसके साथी उसे मेरे भरोसे छोड़ कर आगे निकल चुके थे बम्बे पर मिलने को बोलकर, अब मैं तो कपिल को अकेले छोड़कर आगे बढ़ नही सकता था तो मैं भी उसके साथ चलता रहा रुकाते रुकाते धीरे धीरे,
हमे उम्मीद थी कि वे हमें बुढ़ाना खतौली मार्ग के क्रासिंग पर मिलेंगे वहां पहुंचकर कपिल ने चेतन को फोन किया तो वो आगे निकल चुके थे, थकान और गर्मी की वजह से अब रुकने का मन था तो हम वही एक ट्यूबवेल के बाहर पेड़ के नीचे अड्डा जमा कर बैठ गए, और फाइनल हुआ कि जाने वालों को जाने दो अभी अभूत समय है किसी भी तरह की कोई जल्दबाजी नही है हम आराम करके ही चलेंगे, फिर हमने वहाँ लेटकर आधा घण्टा आराम किया इस दौरान कपिल थोड़ा परेशान था कि उसे छोड़कर चले गए, क्योंकि वो लोग घर से ही साथ आए थे, उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी तो मैं उसे बार बार समझा देता की कोई जल्दबाजी नही है अब तो आ ही गए है थोड़ा बचा है शाम तक पहुंच ही जाएंगे हम भी,
आराम करने के बाद हम वहां से चले आज भी गर्मी बहुत ज्यादा थी, गाँव का रास्ता होने की वजह से पेड़ तो मिल जाए रहे थे सड़क किनारे लेकिन आज हवा बिल्कुल बन्द थी, तो गर्मी कुछ ज्यादा ही लग रही थी, खैर हम भी थके हारे अब भूपखेरी पहुंच गए यहां से हमें पुरा महादेव के लिए नहर (बंबा) की पटरी पटरी जाना था, यहाँ कपिल और चेतन हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन हम नहर की पटरी पर चढ़ चुके थे और वो पीछे रुके हुए थे,
हमारे यहां एक मान्यता है कि जल लेकर वापस नही जाते या पीछे नही हटते तो हमने काँवड़ को वही विश्राम दिया और हैं वापस उनके बताए जगह पहुंचे, वहाँ कुलदीप डेयरी वालो का दूध का भंडारा चल रहा था मेरी इतनी गर्मी में दूध पीने की बिल्कुल इच्छा नही थी लेकिन कपिल और चेतन हमारे लिए भी ले आये तो पीना पड़ा,
अब यहीं पंखे के नीचे डेरा जमाए और इस बार थोड़ा लंबा यानी एक दो घण्टे विश्राम का प्लान था, बाकियों का पता नही लेकिन मैंने यहां नींद की एक झपकी जरूर ले ली, बाकी समय फोन पर लगे लगे बिताया,
अब यहाँ से आगे बढ़े तो हमे बंबे की उतरी पटरी ही जाना था, मैंने यही सोच लिया था कि आज विश्राम गाँव मे ही होगा या तो मंदिर में या घेर में, सबको बता भी दिया था, नहर की पटरी पर कुछ देर हम साथ चले लेकिन फिर वहीं पुरानी कहानी कपिल को मेरे सहारे छोड़ चेतन और कपिल आगे निकल गए,
अब हम कभी उनके साथ लह लेते कभी थोड़ा पीछे ऐसे ही चलते चलते हम पहुंच गए खेड़ी, उन्होंने बताया की यहां के कढ़ी चावल प्रसिद्ध है तो मैंने कहा खा कर चलेंगे, क्योंकि कढ़ी चावल मेरी कमजोरी है, नाम से ही मुँह में पानी आ जाता था, ये पहला भंडारा था जहां मैं स्वेच्छा से खाने के लिए रुका था,
खेड़ी वही गाँव था जहाँ का निवासी पहले दिन मिला संदीप था, उसने भी बताया था कि हमारे यहां का भंडारा काफी प्रसिद्ध है,
यहाँ कांवड़ियों के विश्राम की भी अच्छी व्यवस्था थी, आदर सत्कार सम्मान भी , और कढ़ी चावल तो वाकई स्वादिष्ट बन पड़े थे, मैने दोबारा भी लेकर खाए, साथ मे हरी मिर्च भी थी,
कढ़ी चावल खाकर हम यहाँ से जल्दी ही चल दिये, कोई एक दो किमी ही चले होंगे कि मेरे पैर में दर्द होंना शुरू हो गया, चार साल पहले दोनों पैर में प्लास्टर हुआ था सर्दी में अभी भी दर्द करने लगता है , अब मेरे लिए चलना दुर्भर हो चुका था, कपिल और चेतन अभी भी हमसे आठ दस कदम आगे थे कपिल मुझसे दो चार कदम पीछे, मैंने कपिल को बोला कि मुझसे चला नही जा रहा रुकना पड़ेगा वो बोला आगे रुकते है लेकिन मैं जैसे ही रुकने के लिए जगह दिखी वही बैठ गया उन्हें जाने दिया, बैठ कर पैर को थोड़ा घुमाया जोड़ ओर से, मूव लगाया और करीब ५ मिनट बैठने के बाद फिर चल पड़ा अब सब बिल्कुल सही था मैं अच्छे से चल पा रहा था, जल्दी ही मैंने कपिल को पीछे छोड़ दिया, जिसके लिए मैं सुबह से लुढ़क लुढ़क कर चल रहा था वो भी मेरे लिए नही रुका उसे खुद रुकना चाहिए था मुझे अच्छा लगता,
मैं खुन्नस में इग्नोर करता हुआ आगे बढ़ गया, अब चल भी पहले से तेज रहा था, थोड़े आगे जाने पर कपिल और चेतन एक जगह आराम करते दिखे उन्होंने मुझे भी आवाज लगा ली तो मैं रुक गया, थोड़ी देर बाद कपिल भी पहुंच गया, अब अगली मंजिल सरूरपुर था हम अपने गाँव के काफी नजदीक पहुंच गए थे, तो गाँव जाने और रात्रि विश्राम की चर्चा होने लगे, मैं गाँव चलने के पक्ष में था, लेकिन चेतन गाँव नही जाना चाहता था, बाकी दोनो भी गाँव जाने के इच्छुक थे, सरूरपुर में विश्राम के दौरान ये फाइनल हो गया कि चेतन नही जाना चाहता उसने गाँव जाने से साफ मना कर दिया, लेकिन मुझे गाँव जाने का पूरा मन था तो मैंने उन्हें बोला तुम्हारी मर्जी जैसा करना हो , मैं तो गाँव ही जाऊंगा आज, तो मैंने गाँव के पड़ोसी और बाइक कांवड़िया को फोन कर दिया कि गाँव वाले रास्ते पर मिल जाना वहाँ से साथ मे पैदल गाँव चलेंगे, वो दो और साथियों गौरव एयर अंकित को लेकर मुझे रास्ते पर मिल गया, अब गौरव को बाइक लेकर वापस गाँव भेज दिया और मैं अंकित और राहुल तीनो खेतो के रास्ते पैदल गाव की और निकल लिए,
कपिल और चेतन फिर कहाँ गए कहाँ रुके इस बारे में ना मैंने पुछा ना मुझे पता,
घर पहुंचते पहुंचते अभी ६ बज गए थे, हमारे पहुंचने से पहले ही मेरे घर के बिल्कुल पड़ोस में गौरव के घर पर हमारे रुकने का इंतजाम था,
वहाँ सभी जानने वाले पड़ोसी थे तो सबके पैर छूकर हम वही बैठ गए, सभी पड़ोसी चाय नाश्ते और रात के खाने में क्या खाओगे पूछने लगे इतनी सेवा देखकर मन प्रसन्न हो गया, गौरव के घर से चाय नाश्ता, अंकित के घर से डिनर और मेरे घर से रात में दूध आ गया, अब हम वहाँ पड़ोस के ही ६-७ कांवड़िया हो गए थे,
मैंने सारा एक्स्ट्राआ सामान, कपड़े, घर पहुंचवा दिए, खुद घर नही गया क्योंकि हमारे यहां प्रचलन है कि कांवड़िया जल चढ़ाएं बिना घर नही आते,
रात को विश्राम के लिए हम सब लेट चुके थे तभी राहुल के किसी और जानने वाले का भी फोन आ गया जो दिल्ली काँवड़ लेकर जा रहा था और अभी हमारे गाँव के भंडारे में नारंगपुर पुलिया पर था, मिलने के लिए बुला रहा था, तो मैं और राहुल पहुंच गए, वहाँ करीब एक घंटा लगा हमे,
रात को सोने से पहले ही निश्चित हो गया था सुबह ढाई बजे उठकर चला है पूरा महादेव जलाभिषेक के लिए, जिसके लिए हम दिन दिन से इतना मेहनत कर रहे थे अब हम उस मंजिल के बिल्कुल करीब थे,
पुरा महादेव हमारे यहाँ से करीब १० किमी है तो हमे कोई चिंता नही थी, त्रियोदशी का चढ़ना शुरू हो चुका था और चतुर्दशी का कल दोपहर से होना था,
भयानक थके हुए थे तो लेटते ही नींद भी आ गयी, कई दिन बाद घर जैसी साफ सुथरे बिस्तर और आराम मिला था तो जम कर सोए, इस उम्मीद में कि सुबह ढाई बजे उठ जाएंगे...
क्या हम सुबह ढाई बजे उठ पाए जानने के लिए पढियेगा इस यात्रा की अगली और आखिरी कड़ी,
जल्द ही आएगा #भाग_६ #पुरामहादेव_जलाभिषेक
पढ़ते रहिए....
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